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विविधविषय निरूपण]
[२०१ पण्णत्ता, तं जहा-काले महाकाले रोरुए महारोरुए अपइट्ठाणे नामं पंचमे। ते णं निरया वटे य तंसा य। अहे खुरप्पसंठाणसंठिया जाव असुभा नरगा, असुभाओ नरएसु वेयणाओ।
सातवीं पृथिवी में पृच्छा- [भगवन् ! सातवीं पृथिवी में कितना क्षेत्र अवगाहन कर कितने नारकावास हैं?]
गौतम! एक लाख आठ हजार योजन बाहल्यवाली सातवीं पृथिवी में ऊपर से साढ़े बावन हजार योजन अवगाहन कर और नीचे भी साढ़े बावन हजार योजन छोड़कर मध्यवर्ती तीन हजार योजन में सातवीं पथिवी के नारकियों के पांच अनुत्तर, बहुत विशाल महानरक कहे गये हैं, जैसे-काल, महाकाल, रोरुक महारोरुक और पांचवां अप्रतिष्ठान नाम का नरक है। ये नरक वत्त (गोल) और त्रयस्त हैं. अर्थात मध्यवर्ती अप्रतिष्ठान नरक गोल आकार वाला है और शेष चारों दिशावर्ती चारों नरक त्रिकोण आकार वाले हैं। नीचे तल भाग में वे नरक क्षुरप्र (खुरपा) के आकार वाले हैं।.....यावत् ये नरक अशुभ हैं और इन नरकों में अशुभ वेदनाए हैं।
५८६-केवइया णं भंते! असुरकुमारावासा पण्णत्ता? गोयमा! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तर जोयणसयसहस्स-बाहल्लाए उवरि एगं जोयणसहस्सं ओगाहेत्ता हेट्ठा चेगं जोयण-सहस्सं वज्जित्ता मज्झे अट्ठहत्तरि जोयणसयसहस्से एत्थ णं रयणप्पभाए पुढवीए चउसद्धिं असुरकुमारावाससयसहस्सा पण्णत्ता। ते णं भवणा बाहिं वट्टा, अंतो चउरंसा, अहे पोक्खरकण्णिआ-संठाणसंठिया उक्किण्णंतर विउल-गंभीर-खाय-फलिहा अट्टालय-चरिषदार-गोउर-कवाड-तोरण-पडिदुवार-देसभागा जंत-मुसल-भुसंढ-सयग्घि-परिवारिया अग्झा अडयालकोट्ठरइया अडयालकयवणमाला लाउल्लोइयमहिया गोसीस-सरस-रत्तचंदण-दद्दरदिण्णपंचंगुलितला कालागुरु-पवरकुंदुरुक्क तुरुक्कडझंत-धूवमघमघेतगंधुद्धयाभिरामा सुगंधिया गंधवट्टिभूया अच्छा सण्हा लण्हा घट्ठा मट्ठा नीरया णिम्मला वितिमिरा विसुद्धा सप्पभा समरीया सउज्जोया पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा। एवं जं जस्स कमती तं तस्स, जं जंगाहाहिं भणियं तह चेव वण्णओ।
भगवन् ! असुरकुमारों के आवास (भवन) कितने कहे गये हैं?
गौतम! इस एक लाख अस्सी हजार योजन बाहल्यवाली रत्नप्रभा पृथिवी में ऊपर से एक हजार योजन अवगाहन कर और नीचे एक हजार योजन छोड़कर मध्यवर्ती एक लाख अठहत्तर हजार योजन में रत्नप्रभा पृथिवी के भीतर असुरकुमारों के चौसठ लाख भवनावास कहे गये हैं। वे भवन बाहर गोल हैं, भीतर चौकोण हैं और नीचे कमल की कर्णिका के आकार से स्थित हैं । उनके चारों ओर खाई और परिखा खुदी हुई हैं जो बहुत गहरी हैं । खाई और परिखा के मध्य में पाल बंधी हुई है। तथा वे भवन अट्टालक, चरिका, द्वार, गोपुर, कपाट, तोरण, प्रतिद्वार, देश रूप भाग वाले हैं, यंत्र, मूसल, भुसुंढी, शतघ्नी, इन शस्त्रों से संयुक्त हैं । शत्रुओं की सेनाओं से अजेय हैं । अड़तालीस कोठों से रचित,अड़तालीस वन-मालाओं से शोभित हैं। उनके भूमिभाग और भित्तियाँ उत्तम लेपों से लिपी और चिकनी हैं, गोशीर्षचन्दन और
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जो ऊपर-नीचे समान विस्तार वाली हो वह खाई, जो ऊपर चौड़ी और नीचे संकड़ी हो वह परिखा।