Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Hiralal Shastri
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 318
________________ विविधविषय निरूपण] [१९९ विवेचन-आगे दी गई गाथा संख्या एक के अनुसार दूसरी पृथिवी एक लाख बत्तीस हजार योजन मोटी है। उसके एक हजार योजन ऊपर का और एक हजार योजन नीचे का भाग छोड़कर मध्यवर्ती एक लाख तीस हजार योजन भू-भाग में पच्चीस लाख नारकावास हैं। तीसरी पृथिवी एक लाख अट्ठाईस हजार योजन मोटी है। उसके एक हजार योजन ऊपर और एक हजार योजन नीचे का भाग छोड़कर मध्यवर्ती एक लाख छब्बीस हजार योजन भू-भाग में पन्द्रह लाख नारकावास हैं । चौथी पृथिवी एक लाख बीस हजार योजन मोटी है। उसके ऊपर तथा नीचे की एक एक हजार योजन भूमि को छोड़कर शेष एक लाख अठारह हजार योजन भू-भाग में दश लाख नारकावास हैं। पांचवीं पृथिवी एक लाख अठारह हजार योजन मोटी है। उसके एक एक हजार योजन ऊपरी वा नीचे का भाग छोडकर शेष मध्यवर्ती एक लाख सोलह हजार योजन भू-भाग में तीन लाख नारकावास हैं। छठी पृथिवी एक लाख सोलह हजार योजन मोटी है, उसके एक-एक हजार योजन ऊपरी और नीचे का भाग छोड़कर मध्यवर्ती एक लाख चौदह हजार योजन भू-भाग में पांच कम एक लाख (९९९९५) नारकावास हैं । सातवीं पृथिवी एक लाख आठ हजार योजन मोटी है। उसके साढे बावन, साढे बावन हजार योजन ऊपरी तथा नीचे के भाग को छोड़कर मध्य में पांच नारकावास हैं। उसमें अप्रतिष्ठान नाम का नारकवास ठीक चारों नारकावासों के मध्य में हे और शेष काल, महाकाल, रौरुक और महारौरुक नारकवास उसकी चारों दिशाओं में अवस्थित हैं। सभी पृथिवियों में नारकावास तीन प्रकार के हैं – इन्द्रक, श्रेणीबद्ध (आवलिकाप्रविष्ट) और पुष्पप्रकीर्णक (आवलिकाबाह्य)। इन्द्रक नारकवास सबके बीच में होता है और श्रेणीबद्ध नारकवास उसकी आठों दिशाओं में अवस्थित हैं। पुष्पप्रकीर्णक या आवलिकाबाह्य नारकावास श्रेणिबद्ध नारकावासों के मध्य में अवस्थित हैं। इन्द्रक नारकावास गोल होते हैं और शेष नारकावास त्रिकोण चतुष्कोण आदि नाना आकार वाले कहे गये हैं तथा नीचे की ओर सभी नारकवास क्षुरप्र (खुरपा) के आकार वाले हैं। ५८३ आसीयं बत्तीसं अट्ठावीसं तहेव वीसं च । अट्ठारस सोलसगं अठुत्तरमेव बाहल्लं ॥१॥ तीसा य पण्णवीसा पन्नरस दसेव सयसहस्साई । तिण्णेगं पंचूणं पंचेव अणुत्तरा नरगा ॥२॥ चउसट्ठी असुराणं चउरासीइं च होइ नागाणं । वावत्तरि सुवन्नाणं वाउकुमाराण छण्णउई ॥३॥ दीव-दिसा-उदहीणं विज्जुकुमारिद-थणियमग्गीणं ।। छण्हं पि जुवलयाणं छावत्तरिमो य सयसहस्सा ॥४॥ बत्तीसावीसा वारस अड चउरो य सयसहस्सा । पण्णा चत्तालीसा छच्च सया सहस्सारे ॥५॥ आणय-पाणयकप्पे चत्तारि सयाऽऽरणच्चुए तिनि । सत्त विमाणसयाई चउसु वि एएसु कप्पेसु ॥६॥ एक्कारसुत्तरं हेट्ठिमेसु सत्तुत्तरं च मज्झिमए । सयमेगं उवरिमए पंचेव अणुत्तर विमाणा ॥७॥

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