Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Hiralal Shastri
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 323
________________ २०४] [समवायाङ्गसूत्र ५९१ - ते णं विमाणा अच्चिमालिप्पभा भासरासिवण्णाभा अरया निरया णिम्मलावितिमिरा विसुद्धा सव्वरयणामया अच्छा सण्हा घट्टा मट्ठा णिप्पंका णिक्कंकडच्छाया सप्पभा समरीया सउज्जोया पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा। वे विमान सूर्य की प्रभा के समान प्रभावाले हैं, प्रकाशों की राशियों (पुंजों) के समान भासुर हैं, अरज (स्वाभाविक रज से रहित) हैं, नीरज (आगन्तुक रज से विहीन) हैं, निर्मल हैं, अन्धकाररहित हैं, विशुद्ध हैं, मरीचि-युक्त हैं, उद्योत-सहित हैं, मन को प्रसन्न करने वाले हैं, दर्शनीय हैं, अभिरूप हैं और प्रतिरूप हैं। ५९२-सोहम्मे णं भंते! कप्पे केवइया विमाणावासा पण्णत्ता ? गोयमा! बत्तीसं विमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता। एवं ईसाणाइसु अट्ठावीस वारस अट्ठ चत्तारिएयाइंसयसहस्साई पण्णासं चत्तालीसं छ-एयाइंसहस्साइं आणए पाणए चत्तारि आरणच्युए तिन्नि एयाणि सयाणि एवं गाहाहिं भाणियव्वं। भगवन् ! सौधर्म कल्प में कितने विमानावास कहे गये हैं? गौतम! सौधर्म कल्प में बत्तीस लाख विमानावास कहे गये हैं। इसी प्रकार ईशानादि शेष कल्पों में सहस्रार तक क्रमशः पूर्वोक्त गाथाओं के अनुसार अट्ठाईस लाख, बारह लाख, आठ लाख, चार लाख, पचास हजार, छह सौ तथा आनत प्राणत कल्प में चार सौ और आरणं-अच्युत कल्प में तीन सौ विमान कहना चाहिए। [ग्रैवेयक और अनुत्तर देवों के विमान भी पूर्वोक्त गाथाङ्क ७ के अनुसार जानना चाहिए। ५९३-नेरइयाणं भंते! केवइयं कालं ठिई पनत्ता ? गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्साई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई ठिई पन्नत्ता। अपज्जत्तगाणं नेरइयाणं भंते! केवइयं कालं ठिई पत्रता ? जहन्नेणं अंतोमुहुरा, उक्कोसेणं वि अंतोमुहुत्तं। पज्जत्तगाणं जहन्नेणं दसवाससहस्साई अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई। इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए एवं जाव। भगवन् ! नारकों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? गौतम! जघन्य स्थिति दश हजार वर्ष की और उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरोपम की कही गई है। भगवन! अपर्याप्तक नारकों की कितने काल की स्थिति कही गई है? [गौतम!] जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी स्थिति अन्तर्मुहूर्त की कही गई है। पर्याप्तक नारकियों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त कम दश हजार वर्ष की और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त कम तेतीस सागरोपम की है। इसी प्रकार इस रत्नप्रभा पृथिवी से लेकर महातमःप्रभा पृथिवी तक अपर्याप्तक नारकियों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त की तथा पर्याप्तकों की स्थिति वहाँ की सामान्य, जघन्य और उत्कृष्टि स्थिति से अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त कम जानना चाहिए। [इसी प्रकार भवनवासियों, वानव्यन्तरों, ज्योतिष्कों, कल्पवासियों और ग्रैवेयकवासी देवों की

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