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द्वादशांग गणि-पिटक]
[१७९ संख्या होती है। उसमें समान लक्षणवाली ऊपर कही पुनरुक्त (१२१५००००००) कथाओं को घटा देने पर (१२५०००००००-१२१५०००००० = ३५००००००) साढ़े तीन करोड़ अपुनरुक्त कथाएं हैं।
५३४-एगूणतीसं उद्देसणकाला, एगूणतीसं समुद्देसणकाला, संखेज्जाइं पयसहस्साइं पयग्गेणं पण्णत्ता।संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासया कडा निबद्धा निकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविजंति पण्णविन्जंति परूविजंति निदंसिज्जंति उवदंसिज्जंति।से एवं आया,से एवंणाया, एवं विण्णाया, एवं चरण-करणपरूवणया आघविजंति.। से त्तं णायाधम्मकहाओ ६।
ज्ञाताधर्मकथा में उनतीस उद्देशन काल हैं, उनतीस समुद्देशन-काल हैं, पद-गणना की अपेक्षा संख्यात हजार पद हैं, संख्यात अक्षर हैं, अनंत गम हैं, परीत त्रस हैं, अनन्त स्थावर हैं। ये सब शाश्वत, कृत, निबद्ध, निकाचित, जिन-प्रज्ञप्त भाव इस ज्ञाताधर्मकथा में कहे गए हैं, प्रज्ञापित किये गये हैं, निदर्शित किये गये हैं, और उपदर्शित किये गये हैं। इस अंग के द्वारा आत्मा ज्ञाता होता है, विज्ञाता होता है। इस प्रकार चरण और करण की प्ररूपणा के द्वारा (कथाओं के माध्यम से) वस्तु-स्वरूप का कथन, प्रज्ञापन, प्ररूपण, निदर्शन और उपदर्शन किया गया है। यह छठे ज्ञाताधर्मकथा अंग का परिचय है ६।
५३५-से किं तं उवासगदसाओ? उवासगदसासु उवासयाणं णगराइं उज्जाणाई चैईआई वणखंडा । रायाणो अम्मा-पियरो समोसर
रिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइयइड्डिविसेसा, उवासयाणं सीलव्वय-वेरमण-गुण-पच्चक्खाण-पोसहोववासपडिवजणयाओ सुपरिग्गहा तवोवहाणा पडिमाओ उवसग्गा संलेहणाओ भत्तपच्चक्खाणाइं पाओवगमणाई देवलोगगमणाई सुकुलपच्चायाई पुणो बोहिलाभा अंतकिरियाओ आघविजंति परूविजंति दंसिजंति निदंसिजति उवदंसिजंति।
उपासकदशा क्या है - उसमें क्या वर्णन है?
उपासकदशा में उपासकों के १ नगर, २ उद्यान, ३ चैत्य, ४ वनखण्ड,५ राजा, ६ माता-पिता, ७ समवसरण. ८ धर्माचार्य.९ धर्मकथाएं. १० इहलौकिक-पारलौकिक ऋद्धि-विशेष. ११ उपासकों के शीलव्रत, पाप-विरमण, गुण, प्रत्याख्यान, पौषधोपवास-प्रतिपत्ति, १२- श्रुत-परिग्रह, १३ तप-उपधान, १४ ग्यारह प्रतिमा, १५ उपसर्ग,१६ संलेखना, १७ भक्तप्रत्याख्यान, १८ पादपोपगमन, १९ देवलोक गमन, २० सकल-प्रत्यागमन.२१ पन: बोधिलाभ और २२ अन्तक्रिया का कथन किया गया है. प्ररूपणा की गई है. दर्शन, निदर्शन और उपदर्शन किया गया है।
५३६ -उवासगदसासु णं उवासयाणं रिद्धिविसेसा परिसा वित्थरधम्मसवणाणि बोहिलाभअभिगम-सम्मत्तविसुद्धया थिरत्तं मूलगुण-उत्तरगुणाइयारा ठिईविसेसा पडिमाभिग्गहग्गहणपालणा उवसग्गाहियासणा णिरुवसग्गा य तवा य विचित्ता सीलव्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाणपोसहोववासा अपच्छिममारणंतियाऽय संलेहणा-झोसणाहिं अप्पाणंजह य भावइत्ता बहूणि भत्ताणि अणसणाए य छेअइत्ता उववण्णा कप्पवरविमाणुत्तमेसुजह अणुभवंति सुरवर-विमाणवर-पोंडरीएसु सोक्खाइं अणोवमाइं कमेण भुत्तूण उत्तमाइं तओ आउक्खएणं चुया समाणा जह जिणमयम्मि