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द्वादशांग गणि-पिटक ]
६ विप्रजहत श्रेणिका परिकर्म और ७ च्युताच्युतश्रेणिका - परिकर्म ।
५५९ - से किं तं सिद्धसेणियापरिकम्मे ? सिद्धसेणिआपरिकम्मे चोद्दसविहे पण्णत्ते, तं जहा – माउयापयाणि एगट्ठियपयाणि पाढोट्ठपयाणि आगासपयाणि केउभूयं रासिबद्धं एगगुणं दुगुणं तिगुणं केभूयपडिग्गहो संसारपडिग्गहो नंदावत्तं सिद्धबद्धं । से त्तं सिद्धसेणियापरिकम्मे ।
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सिद्धश्रेणिका परिकर्म क्या है? सिद्धश्रेणिका परिकर्म चौदह प्रकार का कहा गया है, जैसे- १ मातृकापद, २ एकार्थकपद, ३ अर्थपद, ४ पाठ, ५ आकाशपद, ६. केतुभूत, ७ राशिबद्ध, ८ एकगुण, ९ द्विगुण, १० त्रिगुण, ११ केतुभूतप्रतिग्रह, १२ संसार - प्रतिग्रह, १३ नन्द्यावर्त, और १४ सिद्धबद्ध । यह सब सिद्धश्रेणिका परिकर्म है ।
५६० - से किं तं मणुस्ससेणियापरिकम्मे ? मणुस्ससेणियापरिकम्मे चोद्दसविहे पण्णत्ते । तं जहा - ताइं चेव माउआपयाणि जाव नंदावतं मणुस्सबद्धं । से त्तं मणुस्ससेणियापरिकम्मे । मनुष्यश्रेणिका-परिकर्म क्या है? मनुष्य श्रेणिका - परिकर्म चौदह प्रकार का कहा गया है, जैसेमातृकापद से लेकर वे ही पूर्वोक्त नन्द्यावर्त तक और मनुष्यबद्ध । यह सब मनुष्य श्रेणिका परिकर्म है।
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५६१ – अवसेसा परिकम्माई पुट्ठाइयाई एक्कारसविहाइं पन्नत्ताई। इच्चेयाइं सत्त परिकम्माई ससमइयाई, सत्त आजीवियाई, छ चउक्कणइयाइं, सत्त तेरासियाइं । एवमेव सपुव्वावरेणं सत्त परिकम्माई तेसीति भवंतीतिमक्खायाइं । से त्तं परिकम्माई ।
पृष्ठश्रेणिका परिकर्म से लेकर शेष परिकर्म ग्यारह - ग्यारह प्रकार के कहे गये हैं । पूर्वोक्त सातों परिकर्म स्वसामयिक (जैनमतानुसारी) हैं, सात आजीविकमतानुसारी हैं, छह परिकर्म चतुष्कनय वालों के मतानुसारी हैं और सात त्रैराशिक मतानुसारी हैं । इस प्रकार ये सातों परिकर्म पूर्वापर भेदों की अपेक्षा तिरासी होते हैं, यह सब परिकर्म हैं ।
विवेचन – संस्कृत टीकाकार लिखते हैं कि परिकर्म सूत्र और अर्थ से विच्छिन्न हो गये हैं । इन सातों परिकर्मों में से आदि के छह परिकर्म स्वसामयिक हैं। तथा गोशालक द्वारा प्रवर्तित आजीविकापाखण्डिक मत के साथ परिकर्म में सात भेद कहे जाते हैं ।
दिगम्बर-परम्परा के शास्त्रों के अनुसार परिकर्म में गणित के करणसूत्रों का वर्णन किया गया है। इसके वहाँ पाँच भेद बतलाये गये हैं- चन्द्रप्रज्ञति, सूर्यप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, द्वीपसागरप्रज्ञप्ति और व्याख्याप्रज्ञप्ति। चन्द्रप्रज्ञप्ति में चन्द्रमा - सम्बन्धी विमान, आयु, परिवार, ऋद्धि, गमन, हानि-वृद्धि, पूर्ण ग्रहण, अर्धग्रहण, चतुर्थांश ग्रहण आदि का वर्णन किया गया है। सूर्यप्रज्ञप्ति में सूर्य-सम्बन्धी आयु, परिवार, ऋद्धिगमन, ग्रहण आदि का वर्णन किया गया है। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में जम्बूद्वीप- सम्बन्धी मेरु, कुलाचल, महाह्रद, क्षेत्र, कुंड, वेदिका, वन आदि का वर्णन किया गया है । द्वीपसागरप्रज्ञप्ति में असंख्यात द्वीप और समुद्रों का स्वरूप, नन्दीश्वर द्वीपादि का विशिष्ट वर्णन किया गय है । व्याख्याप्रज्ञप्ति में भव्य, अभव्य जीवों के भेद, प्रमाण, लक्षण, रूपी, अरूपी, जीव- अजीव द्रव्यादिकों की विस्तृत व्याख्या की गई
है ।