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[समवायाङ्गसूत्र प्रश्नव्याकरण अंग क्या है-इसमें क्या वर्णन है?
प्रश्नव्याकरण अंग में एक सौ आठ प्रश्नों, एक सौ आठ अप्रश्नों और एक सौ आठ प्रश्नाप्रश्नों को, विद्याओं के अतिशयों को तथा नागों-सुपर्णों के साथ दिव्य संवादों को कहा गया है।
विवेचन-अंगुष्ठप्रश्न आदि मंत्रविद्याएं प्रश्न कहलाती हैं । जो विद्याएं जिज्ञासु के द्वारा पूछे जाने पर शुभाशुभ फल बतलाती हैं, वे प्रश्न-विद्याएं कहलाती हैं। जो विद्याएं मंत्र-विधि से जाप किये जाने पर बिना पूछे ही शुभाशुभ फल को कहती हैं, वे अप्रश्न-विद्याएं कहलाती हैं। तथा जो विद्याएं कुछ प्रश्नों के पूछे जाने पर और कुछ के नहीं पूछे जाने पर भी शुभाशुभ फल को कहती हैं, वे प्रश्नाप्रश्न विद्याएं कहलाती हैं। इन तीनों प्रकार की विद्याओं का प्रश्नव्याकरण अंग में वर्णन किया गया है। तथा स्तंभन. वशीकरण. उच्चाटन आदि विद्याएं विद्यातिशय कहलाती हैं। एवं विद्याओं के साधनकाल में नागकुमार, सुपर्णकुमार तथा यक्षादिकों के साथ साधक का जो दिव्य तात्त्विक वार्तालाप होता है वह दिव्यसंवाद कहा गया है। इन सबका इस अंग में निरूपण किया गया है।
५४७-पण्हावागरणदसासु णं ससमय-परसमय पण्णवय-पत्तेअबुद्ध-विविहत्थभासाभासियाणं अइसयगुण-उवसम-णाणप्पगार-आयरियभासियाणं वित्थरेणं विरमहेसीहिं विविहवित्थरभासियाणंच जगहियाणं अदागंगुटु-बाहु-असि-मणि-खोम-अइच्च भासियाणं विविहमहापसिणविज्जा-मणपसिण-विज्जा-देवयपयोग-पहाण-गुणप्पगासियाणं सब्भूयदुगुणप्पभावनरगणमइविम्हयकराणं अइसयमईयकाल-समय-दम-सम-तित्थकरुत्तमस्म ठिइकरणकारणाणं दुरहिगम-दुरवगाहस्स सव्वसव्वन्नुसम्मअस्स अबुहजण-विबोहणकरस्स पच्चक्खयपच्चयकराणं पण्हाणं विविहगुणमहत्था जिणवरप्पणीया आघविनंति।
प्रश्नव्याकरणदशा में स्वसमय-परसमय के प्रज्ञापक प्रत्येकबुद्धों के विविध अर्थों वाली भाषाओं द्वारा कथित वचनों का, आमाँषधि आदि अतिशयों, ज्ञानादि गुणों और उपशम भाव के प्रतिपादक नाना प्रकार के आचार्यभाषितों का. विस्तार से कहे गये वीर महर्षियों के जगत हितकारी अनेक प्रकार के विस्तृत सुभाषितों का, आदर्श (दर्पण) अंगुष्ठ, बाहु, असि, मणि, क्षौम (वस्त्र) और सूर्य आदि के आश्रय से दिये गये विद्या-देवताओं के उत्तरों का इस अंग में वर्णन है। अनेक महाप्रश्नविद्याएं वचन से ही प्रश्न करने पर उत्तर देती हैं, अनेक विद्याएं मन से चिन्तित प्रश्नों का उत्तर देती हैं, अनेक विद्याएं अनेक अधिष्ठाता देवताओं के प्रयोग-विशेष की प्रधानता से अनेक अर्थों के संवादक गुणों को प्रकाशित करती हैं और अपने सद्भूत (वास्तविक) द्विगुण प्रभावक उत्तरों के द्वारा जन समुदाय को विस्मित करती हैं। उन विद्याओं के चमत्कारों और सत्य वचनों से लोगों के हृदयों में यह दृढ़ विश्वास उत्पन्न होता है कि अतीत काल के समय में दम और शम के धारक, अन्य मतों के शास्ताओं से विशिष्ट जिन तीर्थंकर हुए हैं और वे यथार्थवादी थे, अन्यथा इस प्रकार के सत्य विद्यामंत्र संभव नहीं थे, इस प्रकार संशयशील मनुष्यों के स्थिरीकरण के कारणभूत दुरभिगम (गम्भीर) और दुरवगाह (कठिनता से अवगाहन-करने के योग्य) सभी सर्वज्ञों के द्वारा सम्मत, अबुध (अज्ञ) जनों को प्रबोध करने वाले, प्रत्यक्ष प्रतीति-कारक प्रश्नों के विविध गुण और महान् अर्थ वाले जिनवर-प्रणीत उत्तर इस अंग में कहे जाते हैं, प्रज्ञापित किये जाते हैं, प्ररूपित किये जाते हैं, निदर्शित किये जाते हैं और उपदर्शित किये जाते हैं।