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द्वादशांग गणि-पिटक]
[१७७ परलोइअइड्डीविसेसा १०, भोयपरिच्चाया पव्वज्जाओ सुयपरिग्गहा तवोवहाणाइं परियागा १५, संलेहणाओ भत्तपच्चक्खाणाई पाओवगमणाई देवलोगगमणाई सुकुलपच्चायायाइं २०, पुणबोहिलाभा अंतकिरियाओ २२ य आघविनंति परूविज्जंति दंसिजति निदंसिज्जंति उवदंसिज्जंति।
ज्ञाताधर्मकथा क्या है - इसमें क्या वर्णन है?
ज्ञाताधर्मकथा में ज्ञात अर्थात् उदाहरणरूप मेघकुमार आदि पुरुषों के १ नगर, २ उद्यान, ३ चैत्य, ४ वनखण्ड,५ राजा, ६ माता-पिता,७ समवसरण,८ धर्माचार्य, ९ धर्मकथा, १० इहलौकिक-पारलौकिक ऋद्धि-विशेष, ११ भोग-परित्याग, १२ प्रव्रज्या, १३ श्रुतपरिग्रह, १४ तप-उपधान, १५ दीक्षापर्याय, १६ संलेखना, १७ भक्तप्रत्याख्यान, १८ पादपोपगमन, १९ देवलोग-गमन, २० सुकुल में पुनर्जन्म, २१ पुनः बोधिलाभ और २२ अन्तक्रियाएं कही जाती हैं। इनकी प्ररूपणा की गई हैं, दर्शायी गई हैं, निर्देशित की गई हैं और उपदर्शित की गई हैं।
५३१ – नायाधम्मकहासु णं पव्वइयाणं विणय-करण-जिणसामिसासणवरे संजमपइण्णपालणधिइ-मइ-ववसायदुब्बलाणं १, तवनियम-तवोवहाण-रण-दुद्धर-भर-भग्गाणिसहय-णिसिट्ठाणं २, घोर-परीसह-पराजियाणंऽसहपारद्ध-रुद्धसिद्धालय-महग्गा-निग्गयाणं ३, विसयसुह-तुच्छ-आसावस-दोसमुच्छियाणं ४, विराहिय-चरित्त-नाण-दंसण-अइगुणविविहप्पयार-निस्सारसुन्नयाणं५, संसार-अपार-दुक्खदुग्गइ-भवविविह-परंपरापवंचा ६.धीराण य जियपरिसह-कसाय-सेण्ण-धिइ-धणिय-संजम-उच्छाह-निच्छियाणं ७, आराहियनाण-दंसणचरित्तजोग-निस्सल्ल-सुद्धसिद्धालय-मग्गमभिमुहाणं सुरभवण-विमाणसुक्खाइं अणोवमाइं भुत्तूण चिरं च भोगभोगाणि ताणि दिव्वाणि महरिहाणि। ततो य कालक्कमचुयाण जह य पुणो लद्धसिद्धिमग्गाणं अंतकिरिया। चलियाण य सदेव-माणुस्सधीर-करण-कारणाणि बोधणअणुसासणाणि गुण-दोस दरिसणाणि। दिळेंते पच्चये य सोऊण लोगमुणिणो जह य ठियासासणम्मि जर-मरण-नासणकरे आराहिअसंजमा य सुरलोगपडिनियत्ता ओवेन्ति जह सासयं सिवं सव्वदुक्खमोक्खं, एए अण्णे य एवमाइअत्था वित्थरेण य।
ज्ञाताधर्मकथा में प्रव्रजित पुरुषों के विनय-करण-प्रधान, प्रवर जिन-भगवान् के शासन की संयम-प्रतिज्ञा के पालन करने में जिनकी धृति (धीरता), मति (बुद्धि) और व्यवसाय (पुरुषार्थ) दुर्बल है, तपश्चरण का नियम और तप का परिपालन करने रूप रण (युद्ध) के दुर्धर भार को वहन करने से भग्न हैं - पराङ्मुख हो गये हैं, अतएव अत्यन्त अशक्त होकर संयम-पालन करने का संकल्प छोड़कर बैठ गये हैं, घोर परीषहों से पराजित हो चुके हैं इसलिए संयम के साथ प्रारम्भ किये गये मोक्ष-मार्ग के अवरुद्ध हो जाने से जो सिद्धालय के कारणभूत महामूल्य ज्ञानादि से पतित हैं, जो इन्द्रियों के तुच्छ विषय-सुखों की आशा के वश होकर रागादि दोषों से मूर्च्छित हो रहे हैं, चारित्र, ज्ञान, दर्शन स्वरूप यति-गुणों से और उनके विविध प्रकारों के अभाव से जो सर्वथा निःसार और शून्य हैं, जो संसार के अपार दुःखों की और नरक, तिर्यंचादि नाना दुर्गतियों की भव-परम्परा के प्रपंच में पड़े हुए हैं, ऐसे पतित पुरुषों की कथाएं हैं। तथा जो धीर वीर हैं, परीषहों और कषायों की सेना को जीतने वाले हैं, धैर्य के धनी हैं,संयम में उत्साह