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[समवायाङ्गसूत्र अंतेवासीसयाइं कालगयाइं जाव सव्वदुक्खप्पहीणांई।
अरिष्टनेमि अर्हत् दश सौ वर्ष (१०००) की समग्र आयु भोग कर सिद्ध, बुद्ध, कर्म-मुक्त परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए। पार्श्व अर्हत् के दश सौ अन्तेवासी (शिष्य) कालगत होकर सिद्ध, बुद्ध, कर्म-मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए।
४८७-पउमद्दह-पुंडरीयद्दहा य दस दस जोयणसयाई आयामेणं पण्णत्ता। १०००। पद्मद्रह और पुण्डरीकद्रह दश-दश सौ (१०००) योजन लम्बे कहे गये हैं।
४८८-अणुत्तरोववाइयाणं देवाणं विमाणा एक्कारस जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता।
अनुत्तरौपपातिक देवों के विमान ग्यारह सौ (११००) योजन ऊंचे कहे गये हैं। ४८९-पासस्स णं अरहओ इक्कारस सयाई वेउव्वियाणं होत्था।११००। पार्श्व अर्हत् के संघ में ग्यारह सौ (११००) वैक्रियलब्धि से सम्पन्न साधु थे। ४९० –महापउम-महापुंडरीयदहाणं दो-दो जोयणसहस्साइं आयामेणं पण्णत्ता।२०००। महापद्म और महापुंडरीकद्रह दो-दो हजार योजन लम्बे हैं।
४९१-इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए वइरकंडस्स उवरिल्लाओ चरमंताओ लोहियक्खकंडस्स हेट्ठिल्ले चरमंते एस णं तिनि जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। ३०००।
इस रत्नप्रभा पृथिवी के वज्रकांड के ऊपरी चरमान्त भाग से लोहिताक्षकांड का निचला चान्त भाग तीन हजार योजन के अन्तरवाला है।
विवेचन-क्योंकि वज्रकांड दूसरा और लोहिताक्ष कांड चौथा है, और प्रत्येक कांड एक-एक हजार योजन मोटा है, अत: दूसरे कांड के उपरिम भाग से चौथे कांड का अधस्तन भाग तीन हजार योजन के अन्तरवाला स्वयं सिद्ध है।
४९२-तिगिंछ-केसरिदहा णं चत्तारि-चत्तारि जोयणसहस्साइं आयामेणं पण्णत्ता। ४०००। तिगिंछ और केशरी द्रह चार-चार हजार योजन लम्बे हैं।
४९३-धरणितले मंदरस्स णं पव्वयस्स बहुमग्झदेसभाए सचननाभीओ चउदिसिं पंचपंच जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे मंदरपव्वए पण्णत्ते । ५०००।
धरणीतल पर मन्दर पर्वत के ठीक बीचों बीच रुचकनाभि से चारों ही दिशाओं में मन्दर पर्वत पाँच-पाँच हजार योजन के अन्तरवाला है। ५००० ।
विवेचन-समभूमिभाग पर दश हजार योजन के विस्तार वाले मन्दर पर्वत के ठीक मध्य भाग में आठ रुचक प्रदेश अवस्थित हैं। उनसे चारों ओर पाँच-पाँच हजार योजन तक मन्दर पर्वत की सीमा है। उसी का प्रस्तुत सूत्र में उल्लेख किया गया है।
४९४-सहस्सारे णं कप्पे छविमाणावाससहस्सा पण्णत्ता। ६०००।