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[समवायाङ्गसूत्र गइकल्लाणाणं ठिइकल्लाणाणं आगमेसिभदाणं उक्कोसिआ अणुत्तरोववाइयसंपया होत्था।
श्रमण भगवान् महावीर के कल्याणमय गति और स्थिति वाले तथा भविष्य में मुक्ति प्राप्त करने वाले अनुत्तरौपपातिक मुनियों की उत्कृष्ट सम्पदा आठ सौ थी।
__ ४७८-इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ अट्ठहिं जोयणसएहिं सूरिए चारं चरति।
इस रत्नप्रभा पृथिवी के बहुसम रमणीय भूमिभाग से आठ सौ योजन की ऊंचाई पर सूर्य परिभ्रमण करता है।
४७९-अरहओ णं अरिट्ठनेमिस्स अट्ठसयाई वाईणं सदेवमणुयासुरंमि लोगंमि वाए अपराजिआणं उक्कोसिया वाईसंपया होत्था। ८००।
अरिष्टनेमि अर्हत् के अपराजित वादियों की उत्कृष्टवादि सम्पदा आठ सौ थी, जो देव, मनुष्य और असुरों में से किसी से भी वाद में पराजित होने वाले नहीं थे।
__ ४८०-आणय-पाणय-आरण-अच्चुएसु कप्पेसु विमाणा नव-नव जोयणसयाई उड्ढे . उच्चत्तेणं पण्णत्ता।
निसढकूडस्स णं उवरिल्लाओ सिहरतलाओ णिसढस्स वासहरपव्वयस्स समे धरणितले एस णं नव जोयणसयाइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते । एवं णीलवंतकूडस्स वि।
आनत, प्राणत, आरण और अच्युत इन चार कल्पों में विमान नौ-नौ सौ योजन ऊंचे हैं।
निषध कूट के उपरिम शिखरतल से निषध वर्षधर पर्वत का समधरणीतल नौ सौ योजन अंन्तरवाला है। इसी प्रकार नीलवन्त कूट का भी अन्तर जानना चाहिए।
विवेचन-समभूमितल से निषध और नीलवन्त वर्षधर पर्वत चार-चार सौ योजन ऊंचे हैं और उनके निषध कूट और नीलवन्त कूट पाँच-पाँच सौ योजन ऊंचे हैं। अतः उक्त कूटों के ऊपरी भाग से दोनों ही वर्षधर पर्वतों के समभूमि का सूत्रोक्त नौ-नौ सौ योजन का अन्तर सिद्ध हो जाता है।
४८१-विमलवाहणे णं कुलगरे णं नव धणुसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं होत्था।
इमीसे णं रयणप्पभाए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ नवहिं जोयणसएहिं सव्वुवरिमे तारारूवे चारं चरइ।
विमलवाहन कुलकर नौ सौ धनुष ऊंचे थे।
इस रत्नप्रभा पृथिवी के बहुसमरमणीय भूमिभाग से नौ सौ योजन की सबसे ऊपरी ऊंचाई पर तारा-मंडल संचार करता है।
४८२-निसढस्स णं वासहरपव्वयस्स उवरिल्लाओ सिहरतलाओ इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए पढमस्स कंडस्स बहुमज्झदेसभाए एस णं नव जोयणसयाई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। एवं नीलवंतस्स वि। ९००।