Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Hiralal Shastri
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 279
________________ १६०] [समवायाङ्गसूत्र ऊंचे और पाँच-पाँच सौ गव्यूति उद्वेध वाले कहे गये हैं। सभी वर्षधर कूट पाँच-पाँच सौ योजन ऊंचे और मूल में पाँच-पाँच सौ योजन विष्कम्भ वाले कहे गये हैं। ४६७-उसभे णं अरहा कोसलिए पंच धणुसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था। भरहे णं राया चाउरंतचक्कवट्टी पंचधणुसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था। कौशलिक ऋषभ अर्हत् पाँच सौ धनुष ऊंचे थे। चातुरन्तचक्रवर्ती राजा भरत पाँच सौ धनुष ऊंचे थे। ४६८–सोमणस-गंधमादण-विज्जुप्पभ-मालवंताणं वक्खारपव्वयाणं मंदरपव्वयंतेणं पंच पंच जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, पंच पंच गाउयसयाइं उव्वेहेणं पण्णत्ता। सव्वे विणं वक्खारपव्वयकूडा हरि-हरिस्सहकूडवज्जा पंच पंच जोयणसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं, मूले पंच पंच जोयणसयाई आयामविक्खंभेणं पण्णत्ता। सव्वे वि णं णंदणकूडा बलकूडवज्जा पंच पंच जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, मूले पंच पंच जोयणसयाइं आयामविक्खंभेणं पण्णत्ता। सौमनस, गन्धमादन, विद्युत्प्रभ और मालवन्त ये चारों वक्षार पर्वत मन्दर पर्वत के समीप पाँचपाँच सौ यौजन ऊंचे और पाँच-पाँच सौ गव्यूति उद्वेध वाले हैं। हरि और हरिस्सह कूट को छोड़ कर शेष सभी वक्षार पर्वतकूट पाँच-पाँच सौ योजन ऊंचे और मूल में पाँच-पाँच सौ योजन आयाम-विष्कम्भ वाले कहे गये हैं। बलकूट को छोड़ कर सभी नन्दनवन के कूट पाँच-पाँच सौ योजन ऊंचे और मूल में पाँचपाँच सौ योजन आयाम-विष्कम्भ वाले कहे गये हैं। ४६९–सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु विमाणा पंच पंच जोयणसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं पण्णत्ता। ५००। सौधर्म और ईशान इन दोनों कल्पों में सभी विमान पाँच-पाँच सौ योजन ऊंचे कहे गये हैं। ४७०–सणंकुमार-माहिदेसु कप्पेसु विमाणा छजोयणसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं पण्णत्ता। चुल्लहिमवंतकूडस्स उवरिल्लाओ चरमंताओ चुल्लहिमवंतस्सवासहरपव्वयस्स समधरणितले एस णं छजोयणसयाइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। एवं सिहरीकूडस्स वि। सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्पों में विमान छह सौ योजन ऊंचे कहे गये हैं। क्षुल्लक हिमवन्त कूट के उपरिम चरमान्त से क्षुल्लक हिमवन्त वर्षधर पर्वत का समधरणीतल छह सौ योजन अन्तर वाला है। इसी प्रकार शिखरी कट का भी अन्तर जानना चाहिए। विवेचन–समभूमि तल से क्षुल्लक हिमवन्त और शिखरी वर्षधर पर्वत सौ-सौ योजन ऊंचे हैं और उनके हिमकूट और शिखरी कूट पाँच-पाँच सौ योजन ऊंचे हैं, अत: उक्त कूटों के ऊपरी भाग से उक्त दोनों ही वर्षधर पर्वतों के समभूमि का सूत्रोक्त छह-छह सौ योजन का अन्तर सिद्ध हो जाता है। __ ४७१ -पासस्स णं अरहओ छसया वाईणं सदेवमणुयासुरे लोए वाए अपराजिआणं उक्कोसिया वाइसंपया होत्था।अभिचंदे णं कुलगरे छधणुसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं होत्था।वासुपुज्जे णं अरिहा छहिं पुरिससएहिं सद्धिं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए। ६००।

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