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[समवायाङ्गसूत्र श्रुतस्कन्ध हैं, पच्चीस अध्ययन हैं, पचासी उद्देशन-काल हैं, पचासी समुद्देशन-काल हैं। पद-गणना की अपेक्षा इसमें अट्ठारह हजार पद हैं, संख्यात अक्षर हैं, अनन्त गम हैं, अर्थात् प्रत्येक वस्तु में अनन्त धर्म होते हैं, अतः उनके जानने रूप ज्ञान के द्वार भी अनन्त ही होते हैं, पर्याय भी अनन्त हैं, क्योंकि वस्तु के धर्म अनन्त हैं। त्रस जीव परीत (सीमित) हैं। स्थावर जीव अनन्त हैं। सभी पदार्थ द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा शाश्वत (नित्य) हैं, पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा कृत (अनित्य) हैं, सर्व पदार्थ सूत्रों में निबद्ध (ग्रथित) हैं और निकाचित हैं अर्थात् नियुक्ति, संग्रहणी, हेतु, उदाहरण आदि से प्रतिष्ठित हैं। इस आचाराङ्ग में जिनेन्द्र देव के द्वारा प्रज्ञप्त (उपदिष्ट) भाव सामान्य रूप से कहे जाते हैं, विशेष रूप से प्ररूपण किये जाते हैं, हेतु, दृष्टान्त आदि के द्वारा दर्शाये जाते हैं, विशेष रूप से निर्दिष्ट किये जाते हैं, और उपनय-निगम के द्वारा उपदर्शित किये जाते हैं।
___ आचाराङ्ग के अध्ययन से आत्मा वस्तु-स्वरूप का एवं आचार-धर्म का ज्ञाता होता है, गुणपर्यायों का विशिष्ट ज्ञाता होता है तथा अन्य मतों का भी विज्ञाता होता है। इस प्रकार आचार-गोचरी आदि चरणधर्मों की तथा पिण्डशुद्धि आदि करणधर्मों की प्ररूपणा-इसमें संक्षेप से की जाती है, विस्तार से की जाती है, हेतु-दृष्टान्त से उसे दिखाया जाता है, विशेष रूप से निर्दिष्ट किया जाता है और उपनय-निगमन के द्वारा उपदर्शित किया जाता है ॥१॥
५१५-से किं तं सूअगडे? सूयगडे णं ससमया सूइज्जति, परसमया सूइन्जंति, ससमयपरसमया सूइन्जंति, जीवा सूइजति, अजीवा सूइजति, जीवाजीवा सूइजंति, लोगो सूइजति, अलोगो सूइजति लोगालोगो सूइजति।
सूत्रकृत क्या है - उसमें क्या वर्णन है?
सूत्रकृत के द्वारा स्वसमय सूचित किये जाते हैं, परसमय सूचित किये जाते हैं, स्वसमय और परसमय सूचित किये जाते हैं, जीव सूचित किये जाते हैं, अजीव सूचित किये जाते हैं, जीव और अजीव सूचित किये जाते हैं, लोक सूचित किया जाता है, अलोक सूचित किया जाता है और लोक-अलोक सूचित किया जाता है।
__ ५१६-सूयगडे णं जीवाजीव-पुण्ण-पावासव-संवर-निन्जरण-बंध-मोक्खावसाणा पयत्था सूइज्जति। समणाणं अचिरकालपव्वइयाणं कु समयमोह-मोहमइ-मोहियाणं संदेहजायसहजबुद्धि परिणामसंसइयाणं पावकर-मलिनमइ-गुण-विसोहणत्थं असीअस्स किरियावाइयसयस्स,चउरासीए अकिरियवाईणं, सत्तट्ठीए अण्णाणियवाईणं, बत्तीसाए वेणइयवाईणं तिण्हं तेवट्ठीणं अण्णदिट्ठिइयसयाणं बूहं किच्चा सममए ठाविज्जति। णाणादिह्रत-वयण-णिस्सारं सुट्ठ दरिसयंता विविहवित्थाराणुगम-परमसब्भावगुणिविसिट्ठा मोहपहोयारगा उदारा अण्णाणतमंधकारदुग्गेसु दीवभूआ सोवाणा चेव सिद्धिसुगइगिहुत्तमस्स णिक्खोभ-निप्पकंपा सुत्तत्था।
सूत्रकृत के द्वारा जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध और मोक्ष तक के सभी पदार्थ सूचित किये जाते हैं। जो श्रमण अल्पकाल से ही प्रव्रजित हैं, जिनकी बुद्धि खोटे समयों या सिद्धान्तों के सुनने से मोहित है, जिनके हृदय तत्त्व के विषय में सन्देह के उत्पन्न होने से आन्दोलित हो