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द्वादशांग गणि-पिटक]
[१७३ उक्त चारों प्रकार के एकान्तवादियों के तीन सौ तिरेसठ मतों का स्याद्वाद की दृष्टि से निराकरण कर यथार्थ वस्तु-स्वरूप का निर्णय इस दूसरे सूत्रकृत अंग में किया गया है।
५१९-से किं तं ठाणे? ठाणेणं ससमया ठाविजंति, परसमया ठाविजंति, ससमयपरसमया ठाविजंति, जीवा ठाविन्जंति, अजीवा ठाविजंति, जीवा-जीवा ठाविज्जति, लोगे ठाविज्जति, अलोगे ठाविज्जति, लोगालोगे ठाविति।
ठाणेणं दव्व-गुण-खेत्त-काल-पज्जव-पयत्थाणंसेला सलिला य समुद्दा सूर-भवण-विमाण-आगर-णदीओ । णिहिओ पुरिसज्जया सरा य गोत्ता य जोइसंचाला ॥१॥
-एक्कविहवत्तव्वयं दुविहवत्तव्वयं जाव दसविहवत्तव्वयं जीवाण पोग्गलाण य लोगट्ठाइं च णं परुवणया आघविज्जति।
स्थानाङ्ग क्या है - इसमें क्या वर्णन है?
जिसमें जीवादि पदार्थ प्रतिपाद्य रूप से स्थान प्राप्त करते हैं, वह स्थानाङ्ग है। इसके द्वारा स्वसमय स्थापित-सिद्ध किये जाते हैं, परसमय स्थापित किये जाते हैं, स्वसमय-परसमय स्थापित किये जाते हैं। जीव स्थापित किये जाते हैं, अजीव स्थापित किये जाते हैं, जीव-अजीव स्थापित किये जाते हैं। लोक स्थापित किया जाता है, अलोक स्थापित किया जाता है, और लोक-अलोक दोनों स्थापित किये जाते हैं।
स्थानाङ्ग में जीव आदि पदार्थों के द्रव्य, गुण, क्षेत्र काल और पर्यायों का निरूपण किया गया है। तथा शैलों (पर्वतों) का, गंगा आदि महानदियों का, समुद्रों, सूर्यों, भवनों, विमानों, आकरों (स्वर्ण आदि की खानों) सामान्य नदियों, चक्रवर्ती की निधियों एवं पुरुषों की अनेक जातियों का, स्वरों के भेदों, गोत्रों और ज्योतिष्क देवों के संचार का वर्णन किया गया है। तथा एक-एक प्रकार के पदार्थों का यावत् दशदश प्रकार के पदार्थों का कथन किया गया है। जीवों का, पुद्गलों का तथा लोक में अवस्थित धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय आदि द्रव्यों का भी प्ररूपण किया गया है॥१॥
४२०-ठाणस्स णं परित्ता वायणा, संखेजा अणुओगदारा, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ, संखेज्जा वेढा, संखेजा सिलोगा, संखेन्जाओ संगहणीओ।
__ स्थानाङ्ग की वाचनाएं परीत (सीमित) हैं, अनुयोगद्वार संख्यात हैं, प्रतिपत्तियाँ संख्यात हैं, वेढ (छन्दोविशेष) संख्यात हैं, श्लोक संख्यात हैं और संग्रहणियाँ संख्यात हैं।
५२१ –से णं अंगट्ठयाए तइए अंगे, एगे सुयक्खंधे, दस अज्झयणा, एक्कवीसं उद्देसणकाला,[एक्कवीसं समुद्देसणकाला] वावत्तरि पयसहस्साइं पयग्गेणं पण्णत्ताई।संखेज्जा अक्खरा, अणंता [गमा, अणंता] पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा सासया कडा णिबद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविन्जंति पण्णविजंति, परूविजंति निदंसिज्जति उवदंसिजंति। से एवं आया, एवं णाया एवं विण्णाया, एवं चरण-करणपरूवणया आघविजंति.। से तं ठाणे ३।
यह स्थानाङ्गं अंग की अपेक्षा तीसरा अंग है, इसमें एक श्रुतस्कन्ध है, दश अध्ययन हैं, इक्कीस