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अनेकोत्तरिका - वृद्धि- समवाय ]
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५०८ - पुरिससीहे णं वासुदेवे दस वाससयसहस्साइं सव्वाउयं पालइत्ता पंचमाए पुढवीए नेरइएसु नेरइयत्ताए उववन्ने। १००००००।
पुरुषसिंह वासुदेव दश लाख वर्ष की कुल आयु को भोग कर पाँचवीं नरकपृथिवी में नारक रूप से उत्पन्न हुए ।
५०९ – समणेणं भगवं महावीरे तित्थगरभवग्गहणाओ छट्ठे पोट्टिलभवग्गहणे एगं वासकोडिं सामन्नपरियागं पाउणित्ता सहस्सारे कप्पे सव्वट्ठविमाणे देवत्ताए उववन्ने । १०००००००।
श्रमण भगवान् महावीर तीर्थंकर भव ग्रहण करने से पूर्व छठे पोट्टिल के भव में एक कोटि वर्ष श्रमण-पर्याय पाल कर सहस्रार कल्प के सर्वार्थ विमान में देवरूप से उत्पन्न हुए |
५१० – उसभसिरिस्स भगवओ चरिमस्स य महावीरवद्धमाणस्स एगा सागरोवमकोडाकोडी अबाहाए अंतरे पण्णत्ते । १०००००००००००००० सा. ।
भगवान् श्री ऋषभदेव का और अन्तिम भगवान् महावीर वर्धमान का अन्तर एक कोड़ाकोड़ी सागरोपम कहा गया है । १०००००००००००००० सा. ।