________________
अनेकोत्तरिका-वृद्धि- समवाय]
[१५९ श्रमण भगवान् महावीर के संघ में तीन सौ चतुर्दशपूर्वी मुनि थे।
पाँच सौ धनुष की अवगाहनावाले चरमशरीरी सिद्धि को प्राप्त पुरुषों (सिद्धों) के जीव प्रदेशों की अवगाहना कुछ अधिक तीन सौ धनुष की होती है।
४६०-पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स अद्भुट्ठसयाइं चोद्दसपुव्वीणं संपया होत्या। अभिनंदणे णं अरहा अछुट्टाइंधणुसयाई उड्ढं उच्चसेणं होत्था ३५०।
पुरुषादानीय पार्श्व अर्हन के साढ़े तीन सौ चतुर्दशपूर्वियों की सम्पदा थी। अभिनन्दन अर्हन् साढ़े तीन सौ धनुष ऊंचे थे।
४६१-संभवे णं अरहा चत्तारि धणुसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं होत्था। संभव अर्हत् चार सौ धनुष ऊंचे थे।
४६२-सव्वे वि णं निसढनीलवंता वासहरपव्वया चत्तारि-चत्तारि जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं। पण्णत्ता ||चसारि चत्तारिगाउयसयाई उव्वेहेणं पण्णत्ता। सव्वे विणं वक्खारपव्वया 'णिसढनीलवंतवासहरपव्ययंतेणं चत्तारि चत्तारि जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं । चत्तारि चत्तारि गाउयसयाइं उव्येहेणं पण्णत्ता।
सभी निषध और नीलवन्त वर्षधर पर्वत चार-चार सौ योजन ऊंचे तथा चार-चार सौ गव्यूति उद्वेध (गहराई) वाले हैं। सभी वक्षार पर्वत निषध और नीलवन्त वर्षधर पर्वतों के समीप चार-चार सौ योजन ऊंचे और चार-चार. सौ गव्यूति उद्वेध वाले कहे गये हैं।
४६३-आणय-पाणएसु दोसु कप्पेसु चत्तारि विमाणसया पण्णत्ता। आनत और प्राणत इन दो कल्पों में दोनों के मिलाकर चार सौ विमान कहे गये हैं।
४६४-समणस्सणं भगवओ महावीरस्स चत्तारि सया वाईणं सदेव-मणुयासुरंमि लोगंमि वाए अपराजियाणं उक्कोसिया वाइसंपया होत्था ४००।
श्रमण भगवान् महावीर के चार सौ अपराजित वादियों की उत्कृष्ट वादिसम्पदा थी। वे वादी देव, मनुष्य और असुरों में से भी वाद में पराजित होने वाले नहीं थे।
४६५-अजिते णं अरहा अद्धपंचमाइं धणुसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था। सगरे णं राया चाउरंतचक्कवट्टी अद्धपंचमाइ धणुसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ४५०। अजित अर्हत् साढ़े चार सौ धनुष ऊंचे थे। चातुरन्त चक्रवर्ती सगर राजा भी साढ़े चार सौ धनुष ऊंचे थे।
४६६-सव्वे वि णं वक्खारपव्वया सीआ-सीओआओ महानईओ मंदरपव्वयंते णं पंच पंच जोयणसयाई उड्डं उच्चत्तेणं पंच पंच गाउयसयाइं उव्वहेणं पण्णत्ताओ। सव्वे वि णं वासहरकूडा पंच पंच जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था। मूले पंच पंच जोयणसयाई विक्खंभेणं पण्णत्ता।
सभी वक्षार पर्वत सीता-सीतोदा महानदियों के और मन्दर पर्वत के समीप पाँच-पाँच सौ योजन