Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Hiralal Shastri
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 276
________________ शतस्थानक-समवाय] [१७ पासे णं अरहा पुरिसादाणीए एक्कं वाससयं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे जाव सव्वदुक्खप्पहीणे। एवं थेरे वि अज्जसुहम्मे। __ सुविधि पुष्पदन्त अर्हत् सौ धनुष ऊंचे थे। पुरुषादानीय पार्श्व अर्हत् एक सौ वर्ष की समग्र आयु भोग कर सिद्ध, बुद्ध, कर्म-मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त हो सर्व दुःखों से रहित हुए। इसी प्रकार स्थविर आर्य सुधर्मा भी सौ वर्ष की सर्व आयु भोग कर सिद्ध, बद्ध, कर्म-मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त हो सर्वदुःखों से रहित हुए। ४५०-सव्वे वि णं दीहवेयड्ढपव्वया एगमेगं गाउयसयं उर्दू उच्चत्तेणं पण्णत्ता। सव्वेवि णंचुल्लहिमवंत-सिहरीवासहरपव्वया एगमेगंजोयणसयं उड़े उच्चत्तेणं पण्णत्ता। एगमेगं गाउयसयं उव्वेहेणं पण्णत्ता। सव्वे वि णं कंचणगपव्वया एगमेगं जोयणसयं उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता। एगमेगं गाउयसयं उव्वेहेणं पण्णत्ता। एगमेगं जोयणसयं मूले विक्खंभेणं पण्णत्ता। सभी दीर्घ वैताढ्य पर्वत एक-एक सौ गव्यूति (कोश) ऊंचे कहे गये हैं। सभी क्षुल्लक हिमवन्त और शिखरी वर्षधर पर्वत एक-एक सौ योजन ऊंचे हैं। तथा ये सभी वर्षधर पर्वत सौ-सौ गव्यूति उद्वेध (भूमि में अवगाह) वाले हैं। संभी कांचनक पर्वत एक-एक सौ योजन ऊंचे कहे गये हैं। तथा वे सौ-सौ गव्यूति उद्वेध वाले और मूल में एक-एक सौ योजन विष्कम्भवाले हैं। ॥शतस्थानक समवाय समाप्त।

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