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[समवायाङ्गसूत्र ३३. सेहे रायणियस्स आलवमाणस्स तत्थगए चेव पडिसुणित्ता भवइ आसायणा सेहस्स। सम्यग्दर्शनादि धर्म की विराधनारूप आशातनाएं तेतीस कही गई हैं, जैसे१. शैक्ष (नवदीक्षित या अल्प दीक्षा-पर्यायवाला) साधु रानिक (अधिक दीक्षा पर्याय वाले)
साधु के अति निकट होकर गमन करे। यह शैक्ष की पहली आशातना है। २. शैक्ष साधु रात्निक साधु से आगे गमन करे। यह शैक्ष की दूसरी आशातना है। ३. शैक्ष साधु रानिक साधु के साथ बराबरी से चले। यह शैक्ष की तीसरी आशातना है। ४. शैक्ष साधु रानिक साधु के आगे खड़ा हो, यह शैक्ष की चौथी आशातना है। ५. शैक्ष साधु रानिक साधु के साथ बराबरी से खड़ा हो। यह शैक्ष की पांचवीं आशातना है। ६. शैक्ष साधु रानिक साधु के अतिनिकट खड़ा हो। यह शैक्ष की छठी आशातना है। ७. शैक्ष साधु रात्निक साधु के आगे बैठे। यह शैक्ष की सातवीं आशातना है। ८. शैक्ष साधु रात्निक साधु के साथ बराबरी से बैठे। यह शैक्ष की आठवीं आशातना है। ९. शैक्ष साधु रानिक साधु के अति समीप बैठे। यह शैक्ष की नवी आशातना है। १०. शैक्ष साधु रात्निक साधु के साथ बाहर विचारभूमि को निकलता हुआ यदि शैक्ष रानिक
साधु से पहले आचमन (शौच-शुद्धि) करे तो यह शैक्ष की दसवीं आशातना है। ११. शैक्ष साधु रानिक साधु के साथ बाहर विचारभूमि को या विहारभूमि को निकलता हुआ
यदि शैक्ष रानिक साधु से पहले आलोचना करे और रात्निक पीछे करे तो यह शैक्ष की
ग्यारहवीं आशातना है। १२. कोई साधु रानिक साधु के साथ पहले से बात कर रहा हो, तब शैक्ष साधु रानिक साधु से
पहिले ही बोले और रानिक साधु पीछे बोल पावे। यह शैक्ष की बारहवीं आशातना है। १३. रात्निक साधु रात्रि में या विकाल में शैक्ष से पूछे कि आर्य! कौन सो रहे हैं और कौन जाग
रहे हैं? यह सुनकर भी यदि शैक्ष अनसुनी करके कोई उत्तर न दे, तो यह शैक्ष की तेरहवीं
आशातना है। १४. शैक्ष साधु अशन, पान, खादिम या स्वादिम लाकर पहिले किसी अन्य शैक्ष के सामने
आलोचना करे पीछे रात्निक साधु के सामने, तो यह शैक्ष की चौदहवीं आशातना है। १५. शैक्ष साधु अशन, पान, खादिम या स्वादिम को लाकर पहले किसी अन्य शैक्ष को दिखलावे,
पीछे रानिक साधु को दिखावे, तो यह शैक्ष की पन्द्रहवीं आशातना है। १६. शैक्ष साधु अशन, पान, खादिम या स्वादिम-आहार लाकर पहले किसी अन्य शैक्ष को
भोजन के लिए निमंत्रण दे और पीछे रालिक साधु को निमंत्रण दे, तो यह शैक्ष की
सोलहवीं आशातना है। १७. शैक्ष साधु रानिक साधु के साथ अशन, पान, खादिम, स्वादिम आहार को लाकर रानिक
साधु से बिना पूछे जिस किसी को दे, तो यह शैक्ष की सत्तरहवीं आशातना है। १८. शैक्ष साधु अशन, पान, खादिम, स्वादिम आहार लाकर रानिक साधु के साथ भोजन करता
हुआ यदि उत्तम भोज्य पदार्थों को जल्दी-जल्दी बड़े-बड़े कवलों से खाता है, तो यह शैक्ष