________________
१३६]
[समवायाङ्गसूत्र एकोनाशीतिस्थानक-समवाय ३७२-वलयामुहस्सणं पायालस्स हिट्ठिल्लाओ चरमंताओ इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए हेट्ठिल्ले चरमंते एस णं एगूणासीइं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। एवं केउस्स वि, जूयस्स वि, ईसरस्स वि।
बड़वामुख नामक महापातालकलश के अधस्तन चरमान्त भाग से इस रत्नप्रभा पृथिवी का निचला चरमान्त भाग उन्यासी हजार योजन अन्तर वाला कहा गया है। इसी प्रकार केतुक, यूपक ओर ईश्वर नामक महापातलों का अन्तर भी जानना चाहिए।
विवेचन-रत्नप्रभा पृथिवी एक लाख अस्सी हजार योजन मोटी है। उसमें लवणसमुद्र एक हजार योजन गहरा है। उस गहराई से एक लाख योजन गहरा बड़वामुख पाताल कलश है। उसके अन्तिम भाग से रत्नप्रभा पृथिवी का अन्तिम भाग उन्यासी हजार योजन है। क्योंकि रत्नप्रभा पृथिवी की एक लाख अस्सी हजार योजन मोटाई में से एक लख एक हजार योजन घटाने पर (१८००००.-१०१०००-७९०००) उन्यासी हजार योजन का अन्तर सिद्ध हो जाता है। इसी प्रकार शेष तीनों पाताल कलशों का भी अन्तर उनके अधस्तन अन्तिम भाग से रत्नप्रभा पृथिवी के अधस्तन अन्तिम भाग का उन्यासी-उन्यासी हजार योजन जानना चाहिए।
३७३-छट्टीए पुढवीए बहुमज्झदेसभायाओ छट्ठस्स घणोदहिस्स हेट्ठिल्ले चरमंते एस णं एगूणासीति जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते।
छठी पृथिवी के बहुमध्यदेशभाग से छठे घनोदधिवात का अधस्तल चरमान्त भाग उन्यासी हजार योजन के अन्तर-व्यवधान वाला कहा गया है।
_ विवेचन- छठी तमःप्रभा पृथिवी की मोटाई एक लाख सोलह हजार योजन है। उसके नीचे घनोदधिवात को यदि इस ग्रन्थ के मत से इक्कीस हजार योजन मोटा माना जावे तो उक्त पृथिवी की मध्यभाग रूप आधी मोटाई अठावन हजार और धनोदधिवात की मोटाई इक्कीस हजार इन दोनों को जोड़ने पर (५८०००+२१०००=७९०००) उन्यासी हजार योजन का अन्तर सिद्ध होता है। परन्तु अन्य ग्रन्थों के मत से सभी पृथिवियों के नीचे के घनोदधिवात की मोटाई बीस-बीस हजार योजन ही कही गई है, अतः उनके अनुसार उक्त अन्तर पाँचवी पृथिवी के मध्यभाग से वहाँ के घनोदधिवात के अन्त तक का जानना चाहिए। क्योंकि पाँचवी पृथवी एक लाख अठारह हजार योजन मोटी है। उसका मध्यभाग उनसठ हजार और घनोदधि की मोटाई बीस हजार ये दोनों मिल कर उन्यासी हजार योजन हो जाते हैं। संस्कृतटीकाकार ने यह भी संभावना व्यक्त की है कि 'बहु' शब्द से एक हजार अधिक अर्थात् उनसठ हजार योजन प्रमाण मध्यभाग लेना चाहिए।
३७४-जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स दारस्स य दारस्स य एस णं एगूणासीइं जोयणसहस्साई साइरेगणाई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते।
जम्बूद्वीप के एक द्वार से दूसरे द्वार का अन्तर कुछ अधिक उन्यासी हजार योजन कहा गया है।