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पञ्चनवतिस्थानक-समवाय] योजन के उन्नीस भागों में से दो भाग प्रमाण लम्बी कही गई है।
४२८-अजियस्स णं अरहओ चउणउई ओहिनाणिसया होत्था। अजित अर्हत् के संघ में चौरानवै सौ (९४००) अवधिज्ञानी थे।
॥ चतुर्नवतिस्थानक समवाय समाप्त ॥
श्वर।
पञ्चनवतिस्थानक-समवाय ४२९ -सुपासस्स णं अरहओ पंचाणउइगणा पंचाणउइं गणहरा होत्था। सुपार्श्व अर्हत् के पंचानवै गण और पंचानवै गणधर थे।
४३०-जंबुद्दीवस्स णं दीवसस चरमंताओ चउद्दिसिं लवणसमुदं पंचाणउई पंचाणउई जोयण-सहस्साई ओगाहित्ता चत्तारि महापायालकलसा पण्णत्ता, तं जहा-वलयामुहे केऊए जूयए ईसरे।
लवणसमुद्दस्स उभओ पासं पि पंचाणउयं पंचाणउयं पदेसाओ उव्वेहुस्सेहपरिहाणीए पण्णत्ता।
- इस जम्बूद्वीप के चरमान्त भाग से चारों दिशाओं में लवणसमुद्र के भीतर पंचानवै-पंचानवै हजार योजन अवगाहन करने पर चार महापाताल कलश हैं, जैसे- १. वड़वामुख, २. केतुक, ३. यूपक और ४. ईश्वर।
लवणसमुद्र के उभय पार्श्व पंचानवै-पंचानवै प्रदेश पर उद्वेध (गहराई) और उत्सेध (उँचाई) वाले कहे गये हैं।
विवेचन-लवणसमुद्र के मध्य में दश हजार योजन-प्रमाण क्षेत्र समधरणीतल की अपेक्षा एक हजार योजन गहरा हे। तदनन्तर जम्बूद्वीप की वेदिका की ओर पंचानवै प्रदेश आगे आने पर गहराई एक प्रदेश कम हो जाती है। उससे भी आगे पंचानवै प्रदेश आने पर गहराई और भी एक प्रदेश कम हो जाती है। इस गणितक्रम के अनुसार पंचानवै हाथ जाने पर एक हाथ, पंचानवै योजन जाने पर एक योजन और पंचानवै हजार योजन जाने पर एक हजार योजन गहराई कम हो जाती है। अर्थात् जम्बूद्वीप की वेदिका के समीप लवणसमुद्र का तलभाग भूमि के समानतल वाला हो जाता है। इस प्रकारं लवण समुद्र के मध्य भाग के एक हजार योजन की गहराई की अपेक्षा लवण समुद्र का तट भाग एक हजार योजन ऊंचा है। जब इसी बात को समुद्रतट की ओर से देखते हैं, तब यह अर्थ निकलता है कि तट भाग से लवण समुद्र के भीतर पंचानवै प्रदेश जाने पर तट के जल की ऊंचाई एक प्रदेश कम हो जाती है, आगे पंचानवै प्रदेश जाने पर तट के जल की ऊंचाई एक प्रदेश और कम हो जाती है। इसी गणित के अनुसार पंचानवै हाथ जाने पर एक हाथ, पंचानवै योजन जाने पर एक योजन और पंचानवै हजार योजन आगे जाने पर एक हजार योजन समुद्र तटवर्ती जल की ऊंचाई कम हो जाती है। दोनों प्रकार के कथन का अर्थ एक ही है-समुद्र के मध्य भाग की अपेक्षा जिसे उद्वेध या गहराई कहा गया है उसे ही समुद्र के तट भाग की अपेक्षा उत्सेध या ऊंचाई कहा गया है। इस प्रकार यह निष्कर्ष निकला कि लवणसमुद्र के तट से पंचानवै हजार योजन आगे जाने