________________
१५०]
[समवायाङ्गसूत्र आवास-पव्वयाणं।
मन्दर पर्वत के बहुमध्य देश भाग से गोस्तूप आवासपर्वत का पश्चिमी चरमान्त भाग बानवै हजार योजन के अन्तरवाला है। इसी प्रकार चारों ही आवासपर्वतों का अन्तर जानना चाहिये।
विवेचन–मेरु पर्वत के मध्य भाग से चारों ही दिशाओं में जम्बूद्वीप की सीमा पचास हजार योजन है और वहाँ से चारों ही दिशाओं में लवणसमुद्र के भीतर वियालीस हजार योजन की दूरी पर गोस्तूप आदि चारों अवासपर्वत अवस्थित हैं, अतः मेरुमध्य से प्रत्येक आवासपर्वत का अन्तर बानवै हजार योजन सिद्ध हो जाता है।
॥ द्विनवतिस्थानक समवाय समाप्त॥
त्रिनवतिस्थानक-समवाय ४२५-चंदप्पहस्स णं अरहओ तेणउइंगणा तेणउइं गणहरा होत्था। संतिस्स णं अरहओ तेणउई चउद्दसपुव्वसया होत्था। चन्द्रप्रभ अर्हत् के तेरानवै गण और तेरानवै गणधर थे। शान्ति अर्हत् के संघ में तेरानवै सौ (९३००) चतुर्दशपूर्वी थे। ४२६-तेणउई मंडलगते णं सूरिए अतिवट्टमाणे निवट्टमाणे वा समं अहोरत्तं विसमं करेइ।
दक्षिणायण से उत्तरायण को जाते हुए अथवा उत्तरायाण से दक्षिणायण को लौटते हुए तेरानवै मण्डल पर परिभ्रमण करता हुआ सूर्य सम अहोरात्र को विषम करता है।
विवेचन-सूर्य के परिभ्रमण के संचारमण्डल १८४ हैं। इनमें से जब सूर्य जम्बूद्वीप के ऊपर सबसे भीतरी मण्डल पर संचार करता है, तब दिन अठारह मुहूर्त का होता है और रात बारह मुहूर्त की होती है। इसी प्रकार जब सर्य लवणसमद्र के ऊपर सबसे बाहरी मण्डल पर परिभ्रमण करता है, तब दिन बारह मुहूर्त का होता है और रात अठारह मुहूर्त की होती है। इसी प्रकार सूर्य के उत्तरायण को जाते या दक्षिणायण को लौटते हुए तेरानवैवें मण्डल पर परिभ्रमण करते समय दिन और रात दोनों ही समान अर्थात् पन्द्रह-पन्द्रह मुहूर्त के होते हैं। इससे आगे यदि वह उत्तर की ओर संचार करता है तो दिन बढ़ने लगता है और रात घटने लगती है। और यदि वह दक्षिण की ओर संचार करता है तो रात बढ़ने लगती है और दिन घटने लगता है। इसी व्यवस्था को ध्यान में रख कर कहा गया है कि तेरानवैवें मण्डलगत सूर्य आगे जाता या लौटता हुआ सम अहोरात्र को विषम करता है।
॥त्रिनवतिस्थानक समवाय समाप्त॥ .
चतुर्नवतिस्थानक-समवाय ४२७-निसह-नीलवंतियाओणं जीवाओ चउणउइंचउणउइं जोयणसहस्साइंएक्कं छप्पन्नं जोयणसयं दोन्नि य एगूणवीसइभागे जोयणस्स आयामेणं पण्णत्ताओ।
निषध और नीलवन्त वर्षधर पर्वतों की जीवाएं चौरानवै हजार एक सौ छप्पन योजन तथा एक