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द्विनवतिस्थानक-समवाय]
[१४९ नक-समवाय ४२२-बाणउई पडिमाओ पण्णत्ताओ। प्रतिमाएं वानवै कही गई हैं।
विवेचन-मूलसूत्र में इन प्रतिमाओं के नाम-निर्देश नहीं है, अतः दशाश्रुतस्कन्ध-नियुक्ति के अनुसार उनका कुछ विवरण किया जाता है - मूल में प्रतिमाएँ पाँच कही गई है-समाधिप्रतिमा, उपधानप्रतिमा, विवेकप्रतिमा, प्रतिसंलीनताप्रतिमा और एकाकीविहारप्रतिमा। इनमें समाधिप्रतिमा दो प्रकार की है - श्रुतसमाधिप्रतिमा और चारित्रसमाधिप्रतिमा। दर्शनप्रतिमा को भिन्न नहीं कहा क्योंकि उसका ज्ञान में अन्तर्भाव हो जाता है। श्रुतसमाधिप्रतिमा के बासठ भेद हैं - आचाराङ्ग के प्रथम श्रुतस्कन्ध-गत पाँच, द्वितीय श्रुतस्कन्धगत सैंतीस, स्थानाङ्गसूत्र-गत सोलहऔर व्यवहारसूत्र-गत चार। ये सब मिलकर (५+३७+१६+४=६२) वासठ हैं। यद्यपि ये सभी प्रतिमाएं चारित्रस्वरूपात्मक हैं, तथापि ये विशिष्ट श्रुतशालियों के ही होती हैं, अतः श्रुत की प्रधानता से इन्हें श्रुतसमाधिप्रतिमा के रूप में कहा गया है।
सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसाम्पराय और यथाख्यात चारित्र की अपेक्षा चारित्रसमाधिप्रतिमा के पाँच भेद हैं।
उपधानप्रतिमा के दो भेद हैं – भिक्षुप्रतिमा और उपासकप्रतिमा। इनमें भिक्षुप्रतिमा के मासिकी भिक्षुप्रतिमा आदि बारह भेद हैं और उपासकप्रतिमा के दर्शनप्रतिमा, व्रतप्रतिमा आदि ग्यारह भेद हैं। इस प्रकार उपधान प्रतिमा के (१२+११=२३) तेईस भेद होते हैं।
विवेकप्रतिमा के क्रोधादि भीतरी विकारों और उपधि, भक्त-पानादि बाहरी वस्तुओं के त्याग की अपेक्षा अनेक भेद संभव होने पर भी त्याग सामान्य की अपेक्षा विवेकप्रतिमा एक ही कही गई है।
प्रतिसंलीनताप्रतिमा भी एक ही कही गई है, क्योंकि इन्द्रियसंलीनता आदि तीनों प्रकार की संलीनताओं का एक ही में समवेश हो जाता है।
पाँचवी एकाकी विहार प्रतिमा है, किन्तु उसका भिक्षुप्रतिमाओं में अन्तर्भाव हो जाने से उसे पृथक् नहीं गिना है।
इस प्रकार श्रुतसमाधिप्रतिमा बासठ, चारित्रसमाधिप्रतिमा पाँच, उपधानप्रतिमा तेईस, विवेकप्रतिमा एक और प्रतिसंलीनताप्रतिमा एक, ये सब मिलाकर प्रतिमा के ६२+५+२३+१+१-९२ बानवै भेद हो जाते
४२३-थेरे णं इंदभूती वाणउइ वासाइं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे [जाव सव्वदुक्खप्पहीणे]।
- स्थविर इन्द्रभूति बानवै वर्ष की सर्व आयु भोगकर सिद्ध, बुद्ध, [कर्म-मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित] हुए।
४२४-मन्दरस्स णं पव्वयस्स बहुमज्झदेसभागाओ गोथुभस्स आवासपव्वयस्स पच्चस्थिमिल्ले चरमंते एस णं वाणउइं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। एवं चउण्हं पि