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[समवायाङ्गसूत्र विवेचन-जैनशास्त्रों के अनुसार संख्या के शत (सौ) सहस्र (हजार) शतसहस्र (लाख) आदि से लेकर शीर्षप्रहेलिका तक जो संख्या-स्थान होते हैं, उनमें जहाँ से प्रथम बार चौरासी से गुणाकार प्रारम्भ होता है, उसे स्वस्थान और उससे आगे के स्थान को स्थानान्तर कहा गया है। जैसे-चौरासी लाख वर्षों का एक पूर्वाङ्ग होता है। यह स्वस्थान है और इसे चौरासी लाख से गुणाकार करने पर जो पूर्व नाम का दूसरा स्थान होता है, वह स्थानान्तर है। इसी प्रकार आगे पूर्व की संख्या को चौरासीलाख से गुणा करने घर त्रुटिताङ्ग नाम का जो स्थान प्राप्त होता है, वह स्वस्थान है और उसे चौरासी लाख से गुणा करने पर त्रुटित नाम का जो स्थान आता है, वह स्थानान्तर है। इस प्रकार पूर्व से लेकर शीर्षप्रहेलिका तक चौदह स्वस्थान और चौदह ही स्थानान्तर चौरासी-चौरासी लाख के गुणाकारवाले जानना चाहिए।
३९८-उसभस्व गं अरहओ कोसलियस्स चउरासीइं गणा चउरासीइं गणहरा होत्था। उसभस्स गं अरहभो कोसलियस्स चउरासीइं समणसाहस्सीओ होत्था।
ऋषभ अर्हत् के संध में चौरासी गण, चौरासी गणधर और चौरासी हजार श्रमण (साधु) थे।
३९९-सव्वे विचउरासीई विमाणावाससयसहस्सा सत्ताणउइंच सहस्सा तेवीसंच विमाणा भवंतीति मक्खायं।
सभी बैमानिक देवों के विमानावास चौरासी लाख, सत्तानवै हजार और तेईस विमान होते हैं, ऐसा भगवान् ने कहा है।
स्थानक समवाय समाप्त।
पञ्चाशीतिस्थानक समवाय ४००-आयारस्स णं भगवओ सचूलियागस्स पंचासीइं उद्देसणकाला पण्णत्ता। चूलिका सहित भगवद् आचाराङ्ग सूत्र के पचासी उद्देशन काल कहे गये हैं।
विवेचन-आचाराङ्ग के दो श्रुतस्कन्ध हैं। उनमें से प्रथम श्रुतस्कन्ध के प्रथम अध्ययन में सात, दूसरे में छह, तीसरे में चार, चौथे में चार, पाँचवें में छह, छठे में पाँच, सातवें में आठ, आठवें में चार और नौवें अध्ययन में सात उद्देश हैं। दूसरे श्रुतस्कन्ध में चूलिका नामक पाँच अधिकार हैं, उनमें पाँचबी निशीथ नाम की चूलिका प्रायश्चित्त रूप है, अत: उसका यहाँ ग्रहण नहीं किया गया है। सात अध्ययनों में से प्रथम में शेष चार चूलिकाओं में से प्रथम चूलिका में सात अध्ययन हैं, उनमें क्रम से ग्यारह, तीन, तीन, दो, दो, दो, और दो उद्देश हैं। दूसरी चूलिका में सात उद्देश हैं। तीसरी और चौथी चूलिका में एक-एक उद्देश है। इन सबका योग (७+६+४+४+६+५+८+४+७+११+३+३+२+२+२+२+७+१+१=८५) पचासी होता है। एक उद्देश का पठन-पाठन-काल एक ही माना गया है और एक पठन-पाठन-काल को एक उद्देशन-काल कहा जाता है। इस प्रकार चूलिका सहित आचाराङ्गसूत्र के पचासी उद्देशन-काल कहे गये हैं।
४०१ –धायइसण्डस्स णं मंदरा पंचासीइं जोयणसहस्साइं सव्वग्गेणं पण्णत्ता। रुयए णं मंडलियपव्वए पंचासीइं जोयणसहस्साइं सव्वग्गेणं पण्णत्ते।
धातकीखंड के (दोनों) मन्दराचल भूमिगत अवगाढ तल से लेकर सर्वाग्र भाग (अंतिम ऊंचाई)