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चतुरशीतिस्थानक-समवाय]
[१४१ लाख योजन के अन्तर वाला कहा गया है।
भावार्थ-रत्नप्रभा पृथिवी का दूसरा पंकबहुल कांड चौरासी लाख योजन मोटा है। ३९५-विवाहपन्नत्तीए णं भगवतीए चउरासीइं पयसहस्सा पदग्गेणं पण्णत्ता।
व्याख्याप्रज्ञप्ति नामक भगवतीसूत्र के पद-गणना की अपेक्षा चौरासी हजार पद (अवान्तर अध्ययन) कहे गये हैं।
विवेचन-आचारांग के १८ हजार पद हैं और अगले-अगले अंगों के इससे दुगुने पद होने से भगवती के दो लाख अठासी हजार पद मतान्तर से सिद्ध होते हैं।
३९६-चोरासीइं नागकुमारावाससयहस्सा पण्णत्ता। चोरासीइं पन्नगसहस्साइं पण्णत्ता। चोरासीइं जोणिप्पमुहसयसहस्सा पण्णत्ता। नागकुमार देवों के चौरासी लाख आवास (भवन) हैं। चौरासी हजार प्रकीर्णक कहे गये हैं।
चौरासी लाख जीव-योनियां कही गई हैं। • विवेचन-जीवों के उत्पत्ति-स्थान को योनि कहते हैं । इसी को जन्म का आधार कहा जाता हैं। वे चौरासी लाख होती हैं। उनका विवरण इस प्रकार है(१) पृथिवी, जल, अग्नि और वायु इन चारों की सात-सात लाख योनियाँ
(२८०००००) (२) प्रत्येक और साधारण वनस्पतिकाय की क्रमशः दश और चौदह लाख योनियां
(२४०००००) (३) द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रियों में प्रत्येक की दो-दो लाख योनियाँ (६०००००) देवों की चार लाख योनियाँ
(४०००००) (५) नारकों की चार लाख योनियाँ
(४०००००) (६) तिर्यंच पंचेन्द्रियों की चार लाख योनियाँ
(४०००००) (७) मनुष्यों की चौदह लाख योनियाँ
(१४०००००)
सर्वयोग ८४००००० यद्यपि जीवों के उत्पत्ति स्थान असंख्यात प्रकार के होते हैं, तथापि जिन योनियों के वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श समान गुणवाले होते हैं, उनको समानता की विवक्षा से यहाँ एक योनि कहा गया है।
____३९७-पुव्वाइयाणं सीसपहेलियापज्जवसाणाणं सट्ठाणट्ठाणंतराणं चोरासीए गुणकारे पण्णत्ते।
पूर्व की संख्या से लेकर शीर्षप्रहेलिका नाम की अन्तिम महासंख्या तक स्वस्थान और स्थानान्तर चौरासी (लाख) के गुणकार वाले कहे गये हैं।