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[समवायाङ्गसूत्र ३६२-चउत्थवज्जासु छसु पुढवीसु चोवत्तरि निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता। __ चौथी को छोड़कर शेष छह पृथिवियों में चौहत्तर (३०+२५+१५+३+१=७४) लाख नारकावास कहे गये हैं।
॥चतुःसप्ततिस्थानक समवाय समाप्त॥
पञ्चसप्ततिस्थानक-समवाय ३६३-सुविहिस्स णं पुष्फदंतस्स अरहओ पन्नत्तरि जिणसया होत्था।
सीतले णं अरहा पन्नत्तरिपुव्वसहस्साई अगारवासमझे वसित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए।
संती णं अरहा पन्नत्तरिवाससहस्साई अगारवासमझे वसित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए।
सुविधि पुष्पदन्त अर्हन् के संघ में पचहत्तर सौ (७५००) केवलिजिन थे।
शीतल अर्हन् पचहत्तर हजार पूर्व वर्ष अगारवास में रह कर मुंडित हो अगार से अनगारिता में प्रव्रजित हुए।
शान्ति अर्हन् पचहत्तर हजार वर्ष अगारवास में रह कर मुंडित हो अगार से अनगारिता में प्रव्रजित हुए।
॥पञ्चसप्ततिस्थानक समवाय समाप्त॥
षट्सप्ततिस्थानक-समवाय ३६४-छावत्तरि विज्जुकुमारावाससयसहस्सा पण्णत्ता।एवं दीव-दिसा-उदहीणं विज्जुकुमारिद-थणियमग्गीणं, छण्हं पि जुगलयाणं छावत्तरि सयसहस्साई।
विद्युत्कुमार देवों के छिहत्तर लाख आवास (भवन) कहे गये हैं। इसी प्रकार द्वीपकुमार, दिशाकुमार, उदधिकुमार, विद्युतकुमार, स्तनितकुमार और अग्निकुमार, इन दक्षिण-उत्तर दोनों युगलवाले छहों देवों के भी छिहत्तर लाख आवास (भवन कहे गये हैं।)
॥षट्सप्ततिस्थानक समवाय समाप्त॥
सप्तसप्ततिस्थानक-समवाय ३६५-भरहे राया चाउरंतचक्कवट्टी सत्तहत्तरि पुव्वसयसहस्साई कुमारावासमझे वसित्ता महारायाभिसेयं संपत्ते।
चातुरन्त चक्रवर्ती भरत राजा सतहत्तर लाख पूर्व कोटि वर्ष कुमार अवस्था में रह कर महाराजपद को प्राप्त हुए-राजा हुए।
३६६-अंगवंसाओ णं सत्तहत्तरि रायाणो मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइया।