________________
१३२]
४७.
४८.
४९.
५८.
५९.
६०.
६१.
६२.
६३.
दौर्भाग्यकर – दौर्भाग्य बढ़ाने वाले उपायों को जानना । विद्यागत – अनेक प्रकार की मंत्र-विद्याओं को जानना । मन्त्रगत – अनेक प्रकार के मन्त्रों को जानना ।
-
रहस्यगत – अनेक प्रकार के गुप्त रहस्यों को जानना ।
-
५०.
५१.
समास - प्रत्येक वस्तु के वृत का ज्ञान ।
५२.
चारकला - गुप्तचर, जासूसी की कला ।
५३.
५४.
प्रतिचारकला - ग्रह आदि के संचार का ज्ञान। रोगी आदि की सेवा शुश्रूषा का ज्ञान । व्यूहकला - युद्ध में सेना की गरुड़ आदि आकार की रचना करने का ज्ञान । ५५. प्रतिव्यूहकला - शत्रु की सेना के प्रतिपक्ष रूप में सेना की रचना करने का ज्ञान । स्कन्धावारमान - सेना के शिविर, पड़ाव आदि के प्रमाण का जानना । नगरमान - नगर की रचना को जानना ।
५६.
५७.
६८.
[ समवायाङ्गसूत्र
वास्तुमान - मकानों के मान-प्रमाण का जानना ।
स्कन्धावारनिवेश – सेना को युद्ध के योग्य खड़े करने या पड़ाव का ज्ञान ।
वस्तुनिवेश – वस्तुओं को यथोचित स्थान पर रखने की कला । नगरनिवेश - नगर को यथोचित स्थान पर बसाने की कला ।
इष्वस्त्रकला - बाण चलाने की कला ।
छरुप्प्रवाद कला – तलवार की मूठ आदि बनाना ।
६४.
अश्वशिक्षा – घोड़ों के वाहनों में जोतने और युद्ध में लड़ने की शिक्षा देने का ज्ञान । हस्तिशिक्षा - हाथियों के संचालन करने की शिक्षा देने का ज्ञान ।
६५.
६६.
धनुर्वेद - शब्दवेधी आदि धनुर्विद्या का विशिष्ट ज्ञान होना ।
६७. हिरण्यपाक – सुवर्णपाक, मणिपाक, धातुपाक― चोदी, सोना, मणि और लोह आदि धातुओं को गलाने, पकाने और उनकी भस्म आदि बनाने की विधि जानना ।
बाहुयुद्ध, दंडयुद्ध, मुष्टियुद्ध, यष्टियुद्ध, सामान्य युद्ध, नियुद्ध, युद्धातियुद्ध आदि नाना प्रकार के युद्धों को जानना ।
६९. सूत्रखेड, नालिकाखेड, वर्त्तखेड, धर्मखेड चर्मखेड आदि अनेक प्रकार के खेलों को
जानना ।
-
७०. पत्रच्छेद्य, कटकछेद्य – पत्रों और काष्ठों के छेदन-भेदन की कला जानना । सजीव-निर्जीव- सजीव को निर्जीव और निर्जीव को सजीव जैसा दिखाना । ७२. शकुनिरुत – पक्षियों की बोली जानना ।
७१.
७२ कलाओं के नामों और अर्थों में भिन्नता पाई जाती है। टीकाकार के समक्ष भी यह भिन्नता थी । अतएव उन्होंने लौकिक शास्त्रों से जान लेने का निर्देश किया है। किसी कला में किसी का अन्तर्भाव भी हो जाता है । सर्वत्र एकरूपता नहीं है ।
३५७ - संमुच्छिम - खहयरपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं उक्कोसेणं वावत्तरिं वाससहस्साइं ठिई पण्णत्ता ।