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द्विसप्ततिस्थानक-समवाय]
[१३१ १६. पानविधिकला-अनेक प्रकार के पेय पदर्थ बनाने की कला। १७. वस्त्रविधिकला-अनेक प्रकार के वस्त्र-निर्माण की कला। १८. शयनविधि-सोने की कला।
अथवा सदनविधि-गृह-निर्माण की कला। आर्याविधि-आर्या छन्द बनाने की कला। प्रहेलिका-पहेलियों को जानने की कला।
मागधिका-स्तुति-पाठ करने वाले चारण-भाटों की कला। २२. गाथाकला-प्राकृत आदि भाषाओं में गाथाएं रचने की कला।
श्लोककला-संस्कृतभाषा में श्लोक रचने की कला। २४. गन्धयुति-अनेक प्रकार के गन्धों और द्रव्यों को मिलाकर सुगन्धितपदार्थ बनाने की
कला। २५. मधुसिक्थ-स्त्रियों के पैरों में लगाया जाने वाला माहुर बनाने की कला। २६. आभरणविधि-आभूषण बनाने की कला। २७.
तरुणीप्रतिकर्म-युवती स्त्रियों के अनुरंजन की कला। २८.
स्त्रीलक्षण-स्त्रियों के शुभ-अशुभ लक्षणों को जानने की कला।
पुरुषलक्षण-पुरुषों के शुभ-अशुभ लक्षणों को जानने की कला। ३०. हयलक्षण-घोड़ों के शुभ-अशुभ लक्षणों को जानने की कला।
गजलक्षण-हाथियों के शुभ-अशुभ लक्षणों को जानना। ३२. गोणलक्षण-बैलों के शुभ-अशुभ लक्षणों को जानना।
कुक्कुटलक्षण-मुर्गों के शुभ-अशुभ लक्षणों को जानना। ३४. मेंढलक्षण- मेषों-मेंढ़ों के शुभ-अशुभ लक्षणों को जानना। ३५. चक्रलक्षण-चक्र आयुध के शुभ-अशुभ लक्षणों को जानना। ३६.. छत्रलक्षण-छत्र के शुभ-अशुभ लक्षणों को जानना। ३७. दंडलक्षण-हाथ में लेने के दंड, लकड़ी आदि के शुभ-अशुभ लक्षणों को जानना। ३८. असिलक्षण-खङ्ग, तलवार, वीं आदि के शुभ-अशुभ लक्षणों को जानना।
मणिलक्षण-मणियों के शुभ-अशुभ लक्षणों को जानना। ४०. काकणीलक्षण-काकणी नामक रत्न के शुभ-अशुभ लक्षणों को जानना। ४१. चर्मलक्षण-चमड़े की परीक्षा करने की कला।
अथवा चर्मरत्न में शुभ-अशुभ लक्षणों को जानना। ४२. चन्द्रचर्या-चन्द्र के संचार और समकोण, वक्रकोण आदि से उदय हुए चन्द्र के निमित्त से शुभ-अशुभ लक्षणों को जानना।
जनित उपरागों के शुभ-अशुभ फल को जानना। ४४. राहुचर्या-राहु की गति और उसके द्वारा चन्द्र आदि ग्रहण का फल जानना। ४५. ग्रहचर्या-ग्रहों के संचार के शुभ-अशुभ फलों को जानना। ४६. सौभाग्यकर-सौभाग्य बढ़ाने वाले उपायों को जानना।