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चतुःसप्ततिस्थानक-समवाय]
[१३३ सम्मूर्छिम खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीवों की उत्कृष्ट स्थिति बहत्तर हजार वर्ष की कही गई
॥ द्विसप्ततिस्थानक समवाय समाप्त॥
त्रिसप्ततिस्थानक-समवाय. ३५८-हरिवास-रम्मयवासयाओ णं जीवाओ तेवत्तरि तेवत्तरि जोयणसहस्साइं नव य एगुत्तरे जोयणसए सत्तरसय-एगूणवीसइभागे जोयणस्स अद्धभागं च आयामेणं पण्णत्ताओ।
हरिवर्ष और रम्यकवर्ष की जीवाएं तेहत्तर-तेहत्तर हजार नौ सौ एक योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में से साढ़े सत्तरह भाग प्रमाण लम्बी कही गई हैं।
३५९-विजए णं बलदेवे तेवत्तरिं वाससयसहस्साइं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे जाव सव्वदुक्खप्पहीणे।
विजय बलदेव तेहत्तर लाख वर्ष की सर्व आयु भोग कर सिद्ध, बुद्ध, कर्मों से मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए।
॥ त्रिसप्ततिस्थानक समवाय समाप्त।
चतुःसप्ततिस्थानक-समवाय ३६०-थेरे. णं अग्भूिई गणहरे चोवत्तरि वासाइं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे जाव सव्वदुक्खप्पहीणे।
__ स्थविर अग्निभूति गणधर चौहत्तर वर्ष की सर्व आयु भोगकर सिद्ध, बुद्ध, कर्मों से मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए।
३६१-निसहाओ णं वासहरपव्वयाओ तिगिञ्छिदहाओ सीतोया महानदी चोवत्तरि जोयणसयाइं साहियाई उत्तराहिमुही पवहित्ता वइरामयाए जिब्भियाए चउजोयणायामाए पन्नासजोयणविक्खंभाए वइरतले कुंडे महया घडमुहपवत्तिएणं मुत्तावलिहारसंठाणसंठिएणं पवाहेणं महया सद्देणं पवडइ। एवं सीता वि दक्खिणाहिमुही भाणियव्वा।
निषध वर्षधर पर्वत के तिगिंछ द्रह से सीतोदा महानदी कुछ अधिक चौहत्तर सौ (७४००) योजन उत्तराभिमुखी बह कर महान् घटमुख से प्रवेश कर वज्रमयी, चार योजन लम्बी और पचास योजन चौड़ी जिह्विका से निकल कर मुक्तावलिहार के आकारवाले प्रवाह से भारी शब्द के साथ वज्रतल वाले कुण्ड में गिरती है।
इसी प्रकार सीता नदी भी नीलवन्त वर्षधर पर्वत के केशरी द्रह से कुछ अधिक चौहत्तर सौ (७४००) योजन दक्षिणाभिमुखी बह कर महान् घटमुख से प्रवेश कर वज्रमयी चार योजन लम्बी पचास चोजन चौड़ी जिबिका से निकल कर मुक्तावलिहार के आकारवाले प्रवाह से भारी शब्द के साथ वज्रतल वाले कुण्ड में गिरती है।