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एकाशीतिस्थानक समवाय]
[१३७ विवेचन-जम्बूद्वीप की पूर्व आदि चारों दिशाओं में विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित नाम के चार द्वार हैं । जम्बूद्वीप की परिधि ३१६२२७ योजन ३ कोश १२८ धनुष और १३१/२ अंगुल प्रमाण है। प्रत्येक द्वार की चौड़ाई चार-चार योजन है। चारों की चौड़ाई सोलह योजनों को उक्त परिधि के प्रमाण में से घटा देने और शेष में चार का भाग देने पर एक द्वार से दूसरे द्वार का अन्तर कुछ अधिक उन्यासी हजार योजन सिद्ध हो जाता है।
॥एकोनाशीतिस्थानक समवाय समाप्त ॥
अशीतिस्थानक-समवाय ३७५-सेजंसे णं अरहा असीइंधणूई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था।तिविढे णं वासुदेवे असीई धणूई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था।अयले णं बलदेवे असीइंधणूइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था।तिविढे णं वासुदेवे असीइ वाससयसहस्साइं महाराया होत्था।
श्रेयान्स अर्हन् अस्सी धनुष ऊंचे थे। त्रिपृष्ठ वासुदेव अस्सी धनुष ऊंचे थे। अचल बलदेव अस्सी धनुष ऊंचे थे। त्रिपृष्ठ वासुदेव अस्सी लाख वर्ष महाराज पद पर आसीन रहे।
३७६ -आउबहुले णं कंडे असीइ जोयणसहस्साई बाहल्लेणं पण्णत्ते। रत्नप्रभा पृथिवी का तीसरा अब्बहुल कांड (भाग) अस्सी हजार योजन मोटा कहा गया है। ३७७-ईसाणस्स देविंदस्स देवरन्नो असीइं सामाणियसाहस्सीओ पण्णत्ता। देवेन्द्र देवराज ईशान के अस्सी हजार सामानिक देव कहे गये हैं।
३७८-जंबुद्दीवे णं दीवे असीउत्तरं जोयणसयं ओगाहेत्ता सूरिए उत्तरकट्ठोवगए पढमं उदयं करेइ।
जम्बूद्वीप के भीतर एक सौ अस्सी योजन भीतर प्रवेश कर सूर्य उत्तर दिशा को प्राप्त हो प्रथम बार (प्रथम मंडल में) उदित होता है।
विवेचन-सूर्य का सर्व संचारक्षेत्र पांच सौ दश योजन है । इसमें से तीन सौ तीस योजन लवणसमुद्र के ऊपर है और शेष एक सौ अस्सी योजन जम्बूद्वीप के भीतर है, वह वहाँ उत्तर दिशा की ओर से उदित होता है।
॥अशीतिस्थानक समवाय समाप्त॥
एकाशीतिस्थानक-समवाय ३७९-नवनवमिया भिक्खुपडिमा एक्कासीइं राइदिएहिं चउहि य पंचुत्तरेहिं [भिक्खासएहिं ] अहासुत्तं जाव आराहिया [भवइ ]।
नवनवमिका नामक भिक्षु प्रतिमा इक्यासी रात दिनों में चार सौ पाँच भिक्षादत्तियों द्वारा यथासूत्र, यथामार्ग, यथातत्त्व स्पृष्ट, पालित, शोभित, तीरित, कीर्त्तित और आराधित होती है।