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[ समवायाङ्गसूच
विवेचन - जम्बूद्वीप- सम्बन्धी मेरुपर्वत के पूर्वी भाग से जम्बूद्वीप का पश्चिमी भाग पचपन हजार योजन दूर है। तथा वहां से बारह हजार योजन पश्चिम में लवणसमुद्र के भीतर जाकर गौतम द्वीप अवस्थित हैं । अतः मेरु के पूर्वीभाग से गौतम द्वीप का पूर्वी भाग (५५ +१२=६८) सड़सठ हजार योजन पर अवस्थित होने से उक्त अन्तर सिद्ध होता है ।
३३८–सव्वेसिं पि णं णक्खत्ताणं सीमाविक्खंभेणं सत्तट्ठि भागं भइए समंसे पण्णत्ते । सभी नक्षत्रों का सीमा - विष्कम्भ [ दिन-रात में चन्द्र-द्वारा भोगने योग्य क्षेत्र] सड़सठ भागों से विभाजित करने पर सम अंशवाला कहा गया है।
॥ सप्तषष्टिस्थानक समवाय समाप्त ॥
अष्टषष्टिस्थानक -
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३३९ – धायइसंडे णं दीवे अडसट्ठि चक्कवट्टिविजया, अडसट्ठि रायहाणीओ पण्णत्ताओ। उक्कोसपए अडसट्ठि अरहंता समुप्पज्जिसु वा, समुप्पज्जंति वा, समुप्पज्जिस्संति वा । एवं चक्कवट्टी बलदेवा वासुदेवा ।
-समवाय
धातकीखण्ड द्वीप में अड़सठ चक्रवर्त्तियों के अड़सठ विजय (प्रदेश) और अड़सठ राजधानियां कही गई हैं। उत्कृष्ट पद की अपेक्षा धातकीखण्ड में अड़सठ अरहंत उत्पन्न होते रहते हैं, उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होंगे। इसी प्रकार चक्रवर्ती, बलदेव और वासुदेव भी जानना चाहिए।
३४० – पुक्खरवरदीवड्ढे णं अडसट्ठि विजया, अडसट्ठि रायहाणीओ पण्णत्ताओ। उक्कोसपए अडसट्टिं अरहंता समुप्पज्जिसु वा, समुप्पज्जंति वा, समुप्पज्जिस्संति वा । एवं चक्कवट्टी बलदेवा वासुदेवा।
पुष्करवरद्वीपार्ध में अड़सठ विजय और अड़सठ राजधानियाँ कही गई हैं। वहाँ उत्कृष्ट रूप से अड़सठ अरहन्त उत्पन्न होते रहे हैं, उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होंगे। इसी प्रकार चक्रवर्ती, बलदेव और वासुदेव भी जानना चाहिए ।
विवेचन - मेरुपर्वत मध्य में अवस्थित होने से जम्बूद्वीप का महाविदेह क्षेत्र दो भागों में बँट जाता है - पूर्वी महाविदेह और पश्चिमी महाविदेह । फिर पूर्व में सीता नदी के बहने से तथा पश्चिम में सीतोदा नदी के बहने से उनके भी दो-दो भाग हो जाते हैं। साधारण रूप से उक्त चारों क्षेत्रों में एक-एक तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलदेव और वासुदेव उत्पन्न होते हैं । अतः एक समय में चार ही तीर्थंकर, चार ही चक्रवर्ती, चार ही बलदेव और चार ही वासुदेव उत्पन्न होते हैं । उक्त चारों खण्डों के तीन तीन अन्तर्नदियों और चार-चार पर्वतों से विभाजित होने पर बत्तीस खण्ड हो जाते हैं। इनको चक्रवर्ती विजय करता है। अतः ये विजयदेश कहलाते हैं और उनमें चक्रवर्ती रहता है, अतः उन्हें राजधानी कहते हैं । इस प्रकार जम्बूद्वीप के महाविदेह में सर्व मिला कर बत्तीस विजयक्षेत्र और राजधानियाँ होती हैं । भरत और ऐरवत क्षेत्र ये दो विजय और दो राजधानियों के मिलाने से उनकी संख्या चौतीस हो जाती हैं। जम्बूद्वीप से दूनी रचना धातकीखंडद्वीप में और पुष्करवरद्वीपार्ध में है, अत: (३४ x २ = ६८) उनकी संख्या अड़सठ हो