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सप्तषष्टिस्थानक-समवाय]
[१२५ जाता है। क्योंकि पुष्करवरद्वीप के ठीक मध्य भाग में गोलाकार मानुषोत्तर पर्वत है, जिससे उस द्वीप के दो भाग हो जाते हैं। इस द्वीप के भीतरी भाग तक का क्षेत्र मानुषक्षेत्र कहलाता है क्योंकि मनुष्यों की उत्पत्ति यहीं तक होती है। इस पुष्करद्वीपार्ध में भी पूर्व तथा पश्चिम दिशा में एक एक इषुकार पर्वत के होने से दो भाग हो जाते हैं। उनमें से दक्षिणी भाग दक्षिणार्ध मनुष्यक्षेत्र कहलाता है और उत्तरी भाग उत्तरार्ध मनुष्यक्षेत्र कहा जाता है। यतः मनुष्यक्षेत्र के भीतर ऊपर बताई गई गणना के अनुसार (२+४+१२+४२+७२-१३२) सर्व चन्द्र और सूर्य एक सौ बत्तीस होते हैं। उनके आधे छियासठ चन्द्र और सूर्य दक्षिणार्ध मनुष्यक्षेत्र में प्रकाश करते हैं और छियासठ चन्द्र-सूर्य उत्तरार्ध मनुष्यक्षेत्र में प्रकाश करते हैं। जब उत्तर दिशा की पंक्ति के चन्द्र-सूर्य परिभ्रमण करते हुए पूर्व दिशा में जाते हैं, तब दक्षिण दिशा की पंक्ति के चन्द्र-सूर्य पश्चिम दिशा में परिभ्रमण करने लगते हैं। इस प्रकार छियासठ चन्द्र-सूर्य दक्षिणी पुष्करार्ध में तथा छियासठ चन्द्र-सूर्य उत्तरी पुष्करार्ध में परिभ्रमण करते हुए अपने-अपने क्षेत्र को प्रकाशित करते रहते हैं। यह व्यवस्था सनातन है, अत: भूतकाल में ये प्रकाश करते रहे हैं, वर्तमानकाल में प्रकाश कर रहे हैं और भविष्यकाल में भी प्रकाश करते रहेंगे।
३३३-सेजंसस्स णं अरहओ छावढेि गणा छावटुिं गणहरा होत्था। श्रेयांस अर्हत् के छयासठ गण और छयासठ गणधर थे। ३३४-आभिणिबोहियणाणस्स णं उक्कोसेणं छावढेि सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता।
आभिनिबोधिक (मति) ज्ञान की उत्कृष्ट स्थिति छयासठ सागरोपम कही गई है। (जो तीन बार अच्युत स्वर्ग में या दो बार विजयादि अनुत्तर विमानों में जाने पर प्राप्त होती है।)
॥षट्षष्टिस्थानक समवाय समाप्त।
सप्तषष्टिस्थानक-समवाय ३३५-पंचसंवच्छरियस्स णं जुगस्स नक्खत्तमासेणं भिजमाणस्स सत्तसष्टुिं नक्खत्तमासा पण्णत्ता।
पंचसांवत्सरिक युग में नक्षत्र मास से गिनने पर सड़सठ नक्षत्रमास कहे गये हैं।
३३६ –हेमवय-एरवयाओ णं बाहाओ सत्तसटुिं सत्तसटुिं जोयणसयाइं पणपन्नाइं तिण्णि य भागा जोयणस्स आयामेणं पण्णत्ताओ।
हैमवत और एरवत क्षेत्र की भुजाएं सड़सठ-सड़सठ सौ पचपन योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में से तीन भाग प्रमाण कही गई हैं।
३३७-मंदरस्स णं पव्वयस्स पुरच्छिमिल्लाओ चरमंताओ गोयमदीवस्स पुरच्छिमिल्ले चरमंते एस णं सत्तसटुिं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते।
मन्दर पर्वत के पूर्वी चरमान्तभाग से गौतम द्वीप के पूर्वी चरमान्तभाग का सड़सठ हजार योजन बिना किसी व्यवधान के अन्तर कहा गया है।