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[ समवायाङ्गसूत्र
(उड्डु) (सौधर्म - ईशान देव लोक में प्रथम पाथड़े में चार विमानावलिकाओं के मध्यभाग में रहा हुआ गोल विमान) और ईषत्प्राग्भारा पृथिवी (सिद्धिस्थान) भी पैंतालीस - पैंतालीस लाख योजन विस्तृत जानना चाहिए ।
२६३ - धम्मे णं अरहा पणयालीसं धणूइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था।
धर्म अर्हत् पैंतालीस धनुष ऊंचे थे।
२६४–मदंरस्स णं पव्वयस्स चउद्दिसिं पि पणयालीसं पणयालीसं जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ।
मन्दर पर्वत की चारों ही दिशाओं में लवणसमुद्र की भीतरी परिधि की अपेक्षा पैंतालीस हजार योजन अन्तर बिना किसी बाधा के कहा गया है।
विवेचन - जम्बूद्वीप एक लाख योजन विस्तृत है । तथा मन्दर पर्वत धरणीतल पर दश हजार योजन विस्तृत है । एक लाख में से दश हजार योजन घटाने पर नब्बै हजार योजन शेष रहते हैं। उसके आधे पैंतालीस हजार होते हैं । अतः मन्दर पर्वत से चारों ही दिशाओं में लवणसमुद्र की वेदिका पैंतालीस हजार योजन के अन्तराल पर पाई जाती है ।
२६५ – सव्वे वि णं दिवड्ढखेत्तिया नक्खत्ता पणयालीसं मुहुत्ते चंदेण सद्धिं जोगं जोइंसु वा, जोइंति वा, जोइस्संति वा ।
तिन्नेव उत्तराई पुणव्वसू रोहिणी विसाहा य ।
एए छ नक्खत्ता पणयालमुहुत्तसंजोगा ॥ १ ॥
सभी द्व्यर्ध क्षेत्रीय नक्षत्रों ने पैंतालीस मुहूर्त तक चन्द्रमा के साथ योग किया है, योग करते हैं और योग करेंगे।
तीनों उत्तरा, पुनर्वसु, रोहिणी और विशाखा ये छह नक्षत्र पैतालीस मुहूर्त तक चन्द्र के साथ संयोग वाले कहे गये हैं ।
विवरण - चन्द्रमा का तीस मुहूर्त भोग्य क्षेत्र समक्षेत्र कहलाता है। उसके ड्योढे पैंतालीस मुहूर्त भोग्य क्षेत्र को द्व्यर्धक्षेत्रीय कहते हैं ।
२६६ - महालियाए विमाणपविभत्तीए पंचमे वग्गे पणयालीसं उद्देसणकाला पण्णत्ता । महालिका विमानप्रविभक्ति सूत्र के पाँचवें वर्ग में पैंतालीस उद्देशन कहे गये हैं ।
॥ पंचचत्वारिंशत्स्थानक समवाय समाप्त ॥
षट्चत्वारिंशत्स्थानक - समवाय
२६७ - दिट्ठिवायस्स णं छायालीसं माउयापया पण्णत्ता । बंभीए णं लिवीए छायालीसं
माउयक्खरा पण्णत्ता ।
बारहवें दृष्टिवाद अंग के छियालीस मातृकापद कहे गये हैं । ब्राह्मी लिपि के छयालीस मातृ-अक्षर