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चतुःपञ्चाशत्स्थानक-समवाय ]
त्रिपञ्चाशत्स्थानक - समवाय
२८८ - देवकुरु- उत्तरकुरुयाओ णं जीवाओ तेवन्नं तेवन्नं जोयणसहस्साइं साइरेगाइं आयामेणं पण्णत्ताओ। महाहिमवंत - रुप्पीणं वासहरपव्वयाणं जीवाओ तेवन्नं तेवन्नं जोयणसहस्साइं नव य एगत्तीसे जोयणसए छच्च एगूणवीसईभागे जोयणस्स आयामेणं पण्णत्ताओ।
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देवकुरु और उत्तरकुरु की जीवाएं तिरेपन - तिरेपन हजार योजन से कुछ अधिक लम्बी कही गई हैं । महाहिमवन्त और रुक्मी वर्षधर पर्वतों की जीवायें तिरेपन - तिरेपन हजार नौ सौ इकतीस योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में से छह भाग प्रमाण लम्बी कही गई हैं।
२८९ – समणस्स णं भगवओ महावीरस्स तेवनं अणगारा संवच्छरपरियाया पंचसु अणुत्तरेणु महंइमहालएसु महाविमाणेसु देवत्ताए उववन्ना ।
श्रमण भगवान् महावीर के तिरेपन अनगार एक वर्ष श्रमणपर्याय पालकर महान् विस्तीर्ण एवं अत्यन्त सुखमय पांच अनुत्तर महाविमानों में देवरूप में उत्पन्न हुए।
२९० - संमुच्छिमउरपरिसप्पाणं उक्कोसेणं तेवन्नं वाससहस्सा ठिई पण्णत्ता । सम्मूच्छिम उरपरिसर्प जीवों की उत्कृष्ट स्थिति तिरेपन हजार वर्ष कही गई है। ॥ त्रिपञ्चाशत्स्थानक समवाय समाप्त ॥
चतुःपञ्चाशत्स्थानक - समवाय
२९१ – भरहेरंवएसु णं वासेसु एगमेगाए उस्सप्पिणीए ओसप्पिणीए चउवन्नं चउवन्नं उत्तमपुरिसा उप्पजिंसु वा, उपज्जंति वा, उप्पज्जिसंति वा, तं जहा - चउवीसं तित्थकरा, बारस - चक्कवट्टी, नव बलदेवा, नव वासुदेवा ।
भरत और ऐरवत क्षेत्रों में एक एक उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल में चौपन चौपन उत्तम पुरुष उत्पन्न हुए हैं, उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होंगे, जैसे–चौबीस तीर्थंकर, बारह चक्रवर्ती, नौ बलदेव और नौ वासुदेव (२४+१२+९+९=५४)।
२९२ – अरहा णं अरिट्ठनेमी चउवन्नं राइंदियाई छउमत्थपरियायं पाउणित्ता जिणे जाए केवली सवन्नू सव्वभावदरिसी ।
समणे णं भगवं महावीरे एगदिवसेणं एगनिसिज्जाए चाउप्पन्नाइं वागरणाई वागरित्था । अनंतस्स णं अरहओ चउपन्नं [ गणा चउपन्नं ] गणहरा होत्था ।
अरिष्टनेमि अर्हन् चौपन रात-दिन छद्मस्थ श्रमणपर्याय पाल कर केवली, सर्वज्ञ, सर्वभावदर्शी
जिन हुए ।
श्रमण भगवान् महावीर ने एक दिन में एक आसन से बैठे हुए चौपन प्रश्नों के उत्तररूप व्याख्यान
दिये थे ।
अनन्त अर्हन् के चौपन गण और चौपन गणधर थे ।
॥ चतुःपञ्चात्स्थानक समवाय समाप्त ॥