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अष्टपञ्चाशत्स्थानक-समवाय]
[११९ सप्तपञ्चाशत्स्थानक-समवाय ३००.तिण्हं गणिपिडगाणं आयारचूलियावज्जाणं सत्तावन्नं अज्झयणा पण्णत्ता,तं जहाआयारे सूयगडे ठाणे।
आचारचूलिका को छोड़ कर तीन गणिपिटकों के सत्तावन अध्ययन कहे गये हैं, जैसे-आचाराङ्ग के अन्तिम निशीथ अध्ययन को छोड़ कर प्रथम श्रुतस्कन्ध के नौ, द्वितीय श्रुतस्कन्ध के आचारचूलिका को छोड़कर पन्द्रह, दूसरे सूत्रकृताङ्ग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के सोलह, द्वितीय श्रुतस्कन्ध के सात और स्थानाङ्ग के दश, इस प्रकार सर्व (९+१५+१६+७+१०-५७) सत्तावन अध्ययन कहे गये हैं।
३०१. गोथूभस्स णं आवासपव्वयस्स पुरथिमिल्लाओ चरमंताओ वलयामुहस्स महापायालस्स बहुमज्झदेसभाए एस णं सत्तावन्नं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। एवं दगभागस्स केउयस्स य संखस्स य जूयस्स य दयसीमस्स ईसरस्स य।
गोस्तूभ आवास पर्वत के पूर्वी चरमान्त से बड़वामुख महापातल के बहु मध्य देशभाग का बिना किसी बाधा के सत्तावन हजार योजन अन्तर कहा है। इसी प्रकार दकभास और केतुक का, संख और यूपक का और दकसीम तथा ईश्वर नामक महापाताल का अन्तर जानना चाहिये।
. विवेचन- पहले बतला आये हैं कि जम्बूद्वीप की वेदिका से गोस्तूभ पर्वत का अन्तर अड़तालीस हजार योजन है। गोस्तूभ का विस्तार एक हजार योजन है तथा गोस्तूभ और बड़वामुख का अन्तर बावन हजार योजन है और बड़वामुख का विस्तार दश हजार योजन है, उसके आधे पाँच हजार योजन को बावन हजार योजन में मिला देने पर सत्तावन हजार योजन का अन्तर गोस्तूभ के पूर्वी चरमान्त से बड़वामुख के मध्यभाग तक का सिद्ध हो जाता है। इसी प्रकार से शेष तीनों महापाताल कलशों का भी अन्तर निकल आता है।
३०२. मल्लिस्स णं अरहओ सत्तावन्नं मणपज्जवनाणिसया होत्था।
महाहिमवंत-रुप्पीणं वासहरपव्वयाणंजीवाणंधणुपिठं सत्तावन्नं सत्तावन्नं जोयणसहस्साइं दोन्नि य तेणउए जोयणसए दस य एगूणवीसइभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं पण्णत्तं।
मल्लि अर्हत् के संघ में सत्तावन सौ (५७००) मनःपर्यवज्ञानी मुनि थे।
महाहिमवन्त और रुक्मी वर्षधर पर्वत की जीवाओं का धनुपृष्ठ सत्तावन हजार दो सौ तेरानवै योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में से दशभाग प्रमाण परिक्षेप (परिधि) रूप से कहा गया।
॥ सप्तपञ्चाशत्स्थानक समवाय समाप्त॥
अष्टपञ्चाशत्स्थानक-समवाय ३०३. पढम-दोच्च-पंचमासु तिसु पुढवीसु अट्ठावन्नं निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता।
पहली, दूसरी और पाँचवी इन तीन पृथिवियों में अट्ठावन (३०+२५+३=५८) लाख नारकावास कहे गये हैं।