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[समवायाङ्गसूत्र लोभे इच्छा ४०; मुच्छा कंखा गेही तिण्हा भिज्जा अभिज्जा कामासा भोगासा जीवियासा मरणासा ५०, नन्दी रागे ५२।
मोहनीय कर्म के बावन नाम कहे गये हैं, जैसे-१. क्रोध, २. कोप, ३. रोष, ४. द्वेष, ५. अक्षमा, ६.संज्वलन, ७. कलह, ८. चंडिक्य, ९. भंडन, १०. विवाद, ये दश क्रोध-कषाय के नाम हैं । ११. मान, १२. मद, १३. दर्प, १४. स्तम्भ, १५. आत्मोत्कर्ष, १६. गर्व, १७. परपरिवाद, १८. अपकर्ष, [१९. परिभव] २०. उन्नत, २१. उन्नाम; ये ग्यारह नाम मान कषाय के हैं । २२. माया, २३. उपाधि, २४. निकृति, २५. वलय, २६. गहन, २७. न्यवम, २८. कल्क, २९. कुरुक, ३०. दंभ, ३१. कूट, ३२. जिम्ह ३३. किल्विष, ३४. अनाचरणता, ३५. गूहनता, ३६. वंचनता, ३७. पलिकुंचनता, ३८. सातियोग; ये सत्तरह नाम माया-कषाय के हैं। ३९. लोभ, ४०. इच्छा, ४१. मूर्छा, ४२. कांक्षा, ४३. गद्धि, ४४. तृष्णा, ४५. भिध्या, ४५. अभिध्या, ४७. कामाशा, ४८. भोगाशा, ४९. जीविताशा, ४०. मरणाशा, ५१. नन्दी, ५२. राग; ये चौदह नाम लोभ-कषाय के हैं। इसी प्रकार चारों कषायों के नाम मिल कर [१०+११+१७+१४-५२] बावन मोहनीय कर्म के नाम हो जाते हैं।
२८५-गोथुभस्स णं आवासपव्वयस्स पुरच्छिमिल्लाओ चरमंताओ वलयामुहस्स महापायालस्स पच्चच्छिल्ले चरमंते, एस णं वावन्नं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। एवं दगभासस्स णं केउगस्स संखस्स जूयगस्स दगसीमस्स ईसरस्स।
गोस्तभ आवास पर्वत केपूर्वी चरमान्त भाग से वडवामख महापाताल का प्रश्चिमी चरमान्त बाधा के बिना बावन हजार योजन अन्तर वाला कहा गया है। इसी प्रकार लवणसमुद्र के भीतर अवस्थित दकभास केतुक का शंख नामक जूपक का और दकसीम नामक ईश्वर का, इन चारों महापातल कलशों का भी अन्तर जानना चाहिए।
विवेचन-लवणसमुद्र दो लाख योजन विस्तृत है। उसमें पंचानवै हजार योजन आगे जाकर पूर्वादि चारों दिशाओं में चार महापाताल कलश हैं, उनके नाम क्रम से वड़वामुख, केतुक, जूपक और ईश्वर हैं। जम्बूद्वीप की वेदिका के अन्त से बयालीस हजार योजन भीतर जाकर एक हजार योजन के विस्तार वाले गोस्तूभ आदि वेलन्धर नागराजों के चार आवास पर्वत हैं। इसलिए पंचानवै हजार में से बयालीस हजार योजन कम कर देने पर उनके बीच में बावन हजार योजनों का अन्तर रह जाता है। यही बात इस सूत्र में कही गई है।
__२८६-नाणावरणिजस्स नामस्स अंतरायस्स एतेसि णं तिण्हं कम्मपगडीणं बावन्नं उत्तरपयडीओ पण्णत्ताओ।
ज्ञानावरणीय, नाम और अन्तराय इन तीनों कर्मप्रकृतियों की उत्तरप्रकृतियां बावन (५+४२+५=५२) कही गई हैं।
२८७-सोहम्म-सणंकुमार-माहिंदेसुतिसुकप्पेसुवावन्नं विमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता।
सौधर्म, सनत्कुमार और माहेन्द्र इन तीन कल्पों में (३२+१२+८=५२) बावन लाख विमानावास कहे गये हैं।
द्विपञ्चाशत्स्थानक समवाय समाप्त।