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[ समवायाङ्गसूत्र
विनय-सम्मान का ध्यान रखे। यदि वह अपने इस कर्त्तव्य में चूकता है, तो उनकी आशातना करता है और अपने मोक्ष के साधनों को खंडित करता है । इसी बात को ध्यान में रख कर ये तेतीस आशातनाएं कही गई हैं । प्रकृत सूत्र में चार आशातनाओं का निर्देश कर शेष की यावत् पद से सूचना की गई है। उनका दशाश्रुत के अनुसार स्वरूप - निरूपण किया गया है।
२१६ – चमरस्स सं असुरिंदस्स णं असुररण्णो चमरचंचाए रायहाणीए एक्कमेक्कदाराए तेत्तीसं-तेत्तीसं भोमा पण्णत्ता । महाविदेहे णं वासे तेत्तीसं जोयणसहस्साइं साइरेगाइं विक्खंभेणं पण्णत्ते। जया णं सूरिए बाहिराणंतरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता णं चारं चरइ तया णं इहगयस्स पुरिसस्स तेत्तीसाए जोयणसहस्सेहिं किंचि विसेसूणेहिं चक्खुप्फासं हव्वमागच्छइ ।
असुरेन्द्र असुरराज चमर की राजधानी चमरचंचा नगरी में प्रत्येक द्वार के बाहर तेतीस - तेतीस भौम (नगर के आकार वाले विशिष्ट स्थान) कहे गये हैं। महाविदेह वर्ष (क्षेत्र) कुछ अधिक तेतीस हजार योजन विस्तार वाला है। जब सूर्य सर्वबाह्य मंडल से भीतर की ओर तीसरे मंडल पर आकर संचार करता है, तब वह इस भरत क्षेत्र - गत मनुष्य के कुछ विशेष कम तेतीस हजार योजन की दूरी से दृष्टिगोचर होता
है ।
२१७ - इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं तेत्तीसं पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। अहेसत्तमाए पुढवीए काल-महाकाल-रोरुय - महारोरुएसु नेरइयाणं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। अप्पइट्ठाणनरए नेरइयाणं अजहण्णमणुक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । असुरकुमाराणं अत्थेगइयाणं देवाणं तेत्तीसं पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता । सोहम्मीसाणेसु अत्थेगइयाणं देवाणं तेत्तीसं पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता ।
इस रत्नप्रभा पृथिवी के कितनेक नारकों की स्थिति तेतीस पल्योपम कही गई है। अधस्तन सातवीं पृथिवी के काल, महाकाल, रौरुक और महारौरुक नारकावासों के नारकों की उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरोपम कही गई है । उसी सातवीं पृथिवी के अप्रतिष्ठान नरक में नारकों की अजघन्य - अनुत्कृष्ट (जघन्य और उत्कृष्ट के भेद से रहित पूरी) तेतीस सागरोपम स्थिति कही गई है। कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति तेतीस पल्योपम कही गई है। सौधर्म - ईशान कल्पों में कितनेक देवों की स्थिति तेतीस पल्योपम कही गई है ।
२१८ - विजय - वेजयंत- जयंत अपराजिएसु विमाणेसु उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । जे देवा सव्वट्ठसिद्धे महाविमाणे देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं अजहण्णमणुक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता । ते णं देवा तेत्तीसाए अद्धमासेहिं आणमंति पाणमंति वा, , उस्ससंति वा, निस्ससंति वा । तेसि णं देवाणं तेत्तीसाए वाससहस्सेहिं आहारट्टे
वा, समुप्पज्जइ ।
संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे तेत्तीसं भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति बुज्झिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ।
विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित इन चार अनुत्तर विमानों में देवों की उत्कृष्ट स्थिति तेतीस