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[समवायाङ्गसूत्र एकोनचत्वारिंशत्स्थानक-समवाय २३७–नमिस्स णं अरहओ एगूणचत्तालीसं आहोहियसया होत्था।
समयखेत्ते एगूणचत्तालीसं कुलपव्वया पण्णत्ता, तं जहा-तीसं वासहरा, पंच मंदर, चत्तारि उसकारा। दोच्च-चउत्थ-पंचम-छट्र-सत्तमास णं पंचस पुढवीस एगणचत्तालीसं निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता।
नमि अर्हत् के उनतालीस सौ (३९००) नियत (परिमित) क्षेत्र को जानने वाले अवधिज्ञानी मुनि थे। समय क्षेत्र (अढ़ाई द्वीप) में उनतालीस कुलपर्वत कहे गये हैं, जैसे-तीस वर्षधर पर्वत, पांच मन्दर (मेरु) और चार इषुकार पर्वत। दूसरी, चौथी, पांचवीं, छठी और सातवीं, इन पांच पृथिवियों में उनतालीस (२५+१०+३+पांच कम एक लाख और ५-३९) लाख नारकावास कहे गये हैं।
२३८-नाणावरणिजस्स मोहणिज्जस्स गोत्तस्स आउयस्स एयासि णं चउण्हं कम्मपगडीणं एगूणचत्तालीसं उत्तरपगडीओ पण्णत्ताओ।
ज्ञानावरणीय, मोहनीय, गोत्र और आयुकर्म, इन चारों कर्मों की उनतालीस (५+२८+२+४=३९) उत्तरप्रकृतियां कही गई हैं।
॥एकोनचत्वारिंशत्स्थानक समवाय समाप्त॥
चत्वारिंशत्स्थानक-समवाय २३९-अरहओ णं अरिट्ठनेमिस्स चत्तालीसं अज्जिया साहस्सीओ होत्था। अरिष्टनेमि अर्हन् के संघ में चालीस हजार आर्यिकाएं थीं। २४०-मंदरचूलिया णं चत्तालीसं जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता।
संती अरहा चत्तालीसं धणूई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था। मन्दर चूलिकाएं चालीस योजन ऊंची कही गई हैं। शान्ति अर्हन् चालीस धनुष ऊंचे थे।
२४१-भूयाणंदस्सणं नागकुमारस्स नागरन्नो चत्तालीसंभवणावाससयसहस्सा पण्णत्ता। खुड्डियाए णं विमाणपविभत्तीए तइए वग्गे चत्तालीसं उद्देसणकाला पत्ता।
नागकुमार, नागराज भूतानन्द के चालीस लाख भवनावास कहे गये हैं। क्षुद्रिका विमान-प्रविभक्ति के तीसरे वर्ग में चालीस उद्देशन काल कहे गये हैं।
२४२–फग्गुणपुण्णिमासिणीए णं सूरिए चत्तालीसंगुलियं पोरिसीछायं निव्वट्टइत्ता णं चारं चरइ। एवं कत्तियाए वि पुण्णिमाए।
फाल्गुण पूर्णमासी के दिन सूर्य चालीस अंगुल की पौरुषी छाया करके संचार करता है। इसी प्रकार कार्तिकी पूर्णिमा को भी चालीस अंगुल की पौरुषी छाया करके संचार करता है।
२४३ -महासुक्के कप्पे चत्तालीसं विमाणावाससहस्सा पण्णत्ता। महाशुक्र कल्प में चालीस हजार विमानावास कहे गये हैं।
॥चत्वारिंशत्स्थानक समवाय समाप्त।