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त्रयस्त्रिंशत्स्थानक-समवाय]
[९९ की अठारहवीं आशातना है। १९. रानिक साधु के द्वारा कुछ कहे जाने पर यदि शैक्ष उसे अनसुनी करता है, तो यह शैक्ष की
उन्नीसवीं आशातना है। २०. रात्निक साधु के द्वारा कुछ कहे जाने पर यदि शैक्ष अपने स्थान पर ही बैठे हुए सुनता है तो
यह शैक्ष की बीसवीं आशातना है। २१. रानिक साधु के द्वारा कुछ कहे जाने पर क्या कहा?' इस प्रकार से यदि शैक्ष कहे तो यह
शैक्ष की इक्कीसवीं आशातना है। २२. शैक्ष रानिक साधु को 'तुम' कह कर (तुच्छ शब्द से) बोले तो यह शैक्ष की बाईसवीं
आशातना है। २३. शैक्ष रानिक साधु से यदि चप-चप करता हुआ उदंडता से बोले तो यह शैक्ष की तेईसवीं
आशातना है। २४. शैक्ष, रालिक साधु के कथा करते हुए की 'जी हाँ' आदि शब्दों से अनुमोदना न करे तो यह
शैक्ष की चौबीसवीं आशातना है। २५. शैक्ष, रात्निक के द्वारा धर्मकथा कहते समय 'तुम्हें स्मरण नहीं' इस प्रकार से बोले तो यह . शैक्ष की पच्चीसवीं आशातना है। २६. शैक्ष रात्निक के द्वारा धर्मकथा कहते समय ‘बस करो' इत्यादि कहे तो यह शैक्ष की
__छब्बीसवीं आशातना है। २७. शैक्ष, रालिक के द्वारा धर्मकथा कहते समय यदि परिषद् को भेदन करे तो यह शैक्ष की
सत्ताईसवीं आशातना है। २८. शैक्ष, रानिक साधु के धर्मकथा कहते हुए उस सभा के नहीं उठने पर दूसरी या तीसरी बार
। उसा कथा को कहे तो यह शैक्ष की अट्ठाईसवीं आशातना है। २९. शैक्ष, रात्निक साधु के धर्मकथा कहते हुए यदि कथा की काट करे तो यह शैक्ष की
उनतीसवीं आशातना है। २९. शैक्ष यदि रानिक साधु के शय्या-संस्तारक को पैर से ठुकरावे तो यह शैक्ष की उनतीसवीं
आशातना है। ३०. शैक्ष यदि रालिक साधु के शय्या या आसन पर खड़ा होता, बैठता-सोता है, तो यह शैक्ष की
तीसवीं आशातना है। ३१-३२. शैक्ष यदि रात्निक साधु से ऊंचे या समान आसन पर बैठता है तो यह शैक्ष की
आशातना है। ३३. रानिक के कुछ कहने पर शैक्ष अपने आसन पर बैठा-बैठा उत्तर दे, यह शैक्ष की तेतीसवीं
आशातना है। विवेचन-नवीन दीक्षित साधु का कर्त्तव्य है कि वह अपने आचार्य, उपाध्याय और दीक्षापर्याय में ज्येष्ठ साधु का चलते, उठते, बैठते समय उनके द्वारा कुछ पूछने पर, गोचरी करते समय सदा ही उनके