________________
तेतीसवें समवाय के प्रथम सूत्र में तेतीस आशातनाओं का नाम-निर्देश हैं तो उत्तराध्ययन४८ में भी इनका सूचन किया गया है।
छत्तीसवें समवाय के प्रथम सूत्र में उत्तराध्ययन के छत्तीस अध्ययनों के नाम आये हैं।७४९
उनहत्तरवें समवाय के तीसरे सूत्र में मोहनीय कर्म को छोड़कर शेष सात मूल कर्म-प्रकृतियों को उनहत्तर उत्तर कर्म-प्रकृतियाँ बतायी हैं। यह वर्णन उत्तराध्ययन ५० में भी प्राप्त है।
सत्तरवें समवाय के चौथे सूत्र के अनुसार मोहनीय कर्म की स्थिति, अबाधाकाल सात-हजार वर्ष छोड़कर सत्तर कोटाकोटि सागरोपम की बतायी है। उत्तराध्ययन५१ में यही वर्णन मिलता है।
सत्तासीवें समवाय के पाँचवें सूत्र के अनुसार प्रथम और अन्तिम को छोड़कर छह मूल कर्मप्रकृतियों की सत्तासी उत्तरप्रकृतियाँ होती हैं, यही वर्णन उत्तराध्ययन ७५२ में भी हैं।
सत्तानवें समवाय के तीसरे सूत्र के अनुसार आठ मूल कर्म-प्रकृतियों की सत्तानवे उत्तरकर्म-प्रकृतियाँ हैं, यही वर्णन उत्तराध्ययन७५३ में प्राप्त है।
इस तरह उत्तराध्ययन में समवायांगगत ऐसे अनेक विषय हैं, जिनकी उत्तराध्ययन में कहीं संक्षेप में और कहीं विस्तार से चर्चा मिलती है। समवायांग और अनुयोगद्वार
मूल सूत्रों की परिगणना में अनुयोगद्वार का चतुर्थ स्थान है। अनुयोग का अर्थ है-शब्दों की व्याख्या या विवेचन करने की प्रक्रिया-विशेष। समवायांग में आये हुए अनेक विषय अनुयोगद्वार में भी प्रतिपादित हुये हैं।
प्रथम समवाय के छब्बीसवें सूत्र से लेकर चालीसवें सूत्र तक जिन विषयों की चर्चा है, वे विषय अनुयोगद्वार ५४ में भी चर्चित हैं।
दूसरे समवाय के आठवें सूत्र से लेकर बीसवें सूत्र तक जिन-जिन विषयों की चर्चा की गयी है, वे अनुयोगद्वार५५ में चर्चित हुये हैं।
तृतीय समवाय के तेरहवें सूत्र से लेकर इक्कीसवें सूत्र तक जिन विषयों का उल्लेख किया गया है वे विषय अनुयोगद्वार ५६ में भी आये हैं।
चौथे समवाय के दसवें सूत्र से लेकर सत्तरहवें सूत्र तक के विषयों पर अनुयोगद्वारसूत्र७५७ में भी चिन्तन किया गया है। ७४८. उत्तराध्ययन-अ. ३१ ७४९.
उत्तराध्ययन-अ.१ से ३६ तक
उत्तराध्ययन-अ. ३३ ७५१. उत्तराध्ययन-अ. ३३ गा. ३१ ७५२. उत्तराध्ययन-अ.३३
उत्तराध्ययन-अ. ३३ ७५४. अनुयोगद्वार -सूत्र. १३९
अनुयोगद्वार -सूत्र. १३९ ७५६. अनुयोगद्वार -सूत्र. १३९, १४० ७५७. अनुयोगद्वार सूत्र-सूत्र १३९
[१०३]
७५०.
७५३.
७५५.