________________
५०]
[समवायाङ्गसूत्र प्रत्याख्यानावरण लोभ; संज्वलन क्रोध, संज्वलन मान, संज्वलन माया और संज्वलन लोभ। ११२-मंदरस्स णं पव्वयस्स सोलस नामधेया पण्णत्ता, तं जहा
मंदर मेरु२ मणोरण सुदंसण सयंप ५ य गिरिराया। रयणुच्चय पियदंसण मज्झे लोगस्स नाभी१० य॥१॥ अत्थे११ अ सूरिआवत्ते१२ सूरिआ१३ वरणे त्ति अ।
उत्तरे१४ अ दिसाई अ१५ वडिंसे१६ इअ सोलसे ॥२॥ मन्दर पर्वत के सोलह नाम कहे गये हैं, जैसे
१ मन्दर, २ मेरु, ३ मनोरम, ४ सुदर्शन ५ स्वयम्प्रभ ६ गिरिराज, ७ रत्नोच्चय ८ प्रियदर्शन, ९ लोकमध्य, १० लोकनाभि, ११ अर्थ, १२ सूर्यावर्त, १३ सूर्यावरण १४ उत्तर, १५ दिशादि और १६ अवतंस ॥१-२॥
११३-पासस्स णं अरहतो पुरिसादाणीयस्स सोलस समणसाहस्सीओ उक्कोसिआ समणसंपदा होत्था। आयप्पवायस्स णं पुव्वस सोलस वत्थू पण्णत्ता। चमरबलीणं ओवारियालेणे सोलस जोयणसहस्साइं आयामविक्खंभेणं पण्णत्ते। लवणे णं समुद्दे सोलस जोयणसहस्साई उस्सेहपरिवुड्डीए पण्णत्ते।
पुरुषादानीय पार्श्व अर्हत् की उत्कृष्ट श्रमण-सम्पदा सोलह हजार श्रमणों की थी। आत्मप्रवाद पूर्व के वस्तु नामक सोलह अर्थाधिकार कहे गये हैं। चमरचंचा और बलीचंचा नामक राजधानियों के मध्य भाग में उतार-चढ़ाव रूप अवतारिकालयन वृत्ताकार वाले होने से सोलह हजार आयाम-विष्कम्भ वाले कहे गये हैं। लवणसमुद्र के मध्य भाग में जल के उत्सेध की वृद्धि सोलह हजार योजन कही गई है।
११५-इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं सोलस पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता।पंचमीए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं सोलस सागरोवमा ठिई पण्णत्ता।असुरकुमाराणं अत्थेगइआणं सोलस पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं सोलस पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता।
इस रत्नप्रभा पृथिवी में कितनेक नारकों की स्थिति सोलह पल्योपम कही गई है। पाँचवीं धूमप्रभा पृथिवी में कितनेक नारकियों की स्थिति सोलह सागरोपम की कही गई है। कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति सोलह पल्योपम कही गई है। सौधर्म-ईशान कल्पों में कितनेक देवों की स्थिति सोलह पल्योपम कही गई है।
११५–महासुक्के कप्पे देवाणं अत्थेगइयाणं सोलस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता।जे देवा आवत्तं विआवत्तं नंदिआवत्तं महाणंदिआवत्तं अंकुसं अंकुसपलंबं भदं सुभदं महाभदं सव्वओभदं भद्दुत्तरवडिंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं सोलस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। ते णं देवा सोलसण्हं अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा, उस्ससंति वा, नीससंति वा। तेसि णं देवाणं सोलसवाससहस्सेहिं आहारट्ठे समुप्पज्जइ।