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है ॥२८-२९ ॥ यह पच्चीसवाँ महामोहनीय स्थान है।
[ समवायाङ्गसूत्र
(२६) जो पुन: पुन: (वार-वार) स्त्री-कथा, भोजन- कथा आदि विकथाएं करके मंत्र-यंत्रादि प्रयोग करता है या कलह करता है और संसार से पार उतारने वाले सम्यग्दर्शनादि सभी तीर्थों के भेदन करने के लिए प्रवृत्ति करता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है ॥ ३० ॥ यह छब्बीसवाँ मोहनीय स्थान है।
*. (२७) जो अपनी प्रशंसा के लिए मित्रों के निमित्त अधार्मिक योगों का अर्थात् वशीकरणादि प्रयोगों का वार-वार उपयोग करता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है ॥ ३१ ॥ यह सत्ताईसवाँ मोहनीय स्थान है।
( २८ ) जो मनुष्य-सम्बन्धी अथवा पारलौकिक देवभव सम्बन्धी भोगों में तृप्त नहीं होता हुआ वार - वार उनकी अभिलाषा करता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है ॥ ३२ ॥ यह अट्ठाईसवां मोहनीय स्थान है।
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(२९) जो अज्ञानी देवों की ऋद्धि (विमानादि सम्पत्ति), द्युति ( शरीर और आभूषणों का कान्ति), यश और वर्ण (शोभा) का, तथा उनके बल-वीर्य का अवर्णवाद करता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है ॥३३ ॥ यह उनतीसवाँ मोहनीय स्थान है।
( ३० ) जो देवों, यक्षों और गुह्यकों (व्यन्तरों) को नहीं देखता हुआ भी "मैं उनको देखता हूँ" ऐसा कहता है, वह जिनदेव के समान अपनी पूजा का अभिलाषी अज्ञानी पुरुष महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है ॥ ३४ ॥ यह तीसवाँ मोहनीय स्थान है।
१९७ - थेरे णं मंडियपुत्ते तीसं वासाइं सामण्णपरियायं पाउणित्ता सिद्धे बुद्धे जाव सव्वदुक्खप्पहीणे ।
स्थविर मंडितपुत्र तीस वर्ष श्रमण-पर्याय का पालन करके सिद्ध, बुद्ध हुए, यावत् सर्व दुःखों से रहित हुए ।
१९८ - एगमेगे णं अहोरत्ते तीसमुहुत्ते मुहुत्तग्गेणं पण्णत्ते । एएसिं णं तीसाए मुहुत्ताणं तसं नामज्जा पण्णत्ता, तं जहा - रोद्दे सत्ते मित्ते वाऊ सुपीए ५, अभिचंदे माहिंदे पलंबे बंभे सच्चे १०, आणंदे विजए विस्ससेणे पायावच्चे उवसमे १५, ईसाणे तट्ठे भाविअप्पा वेसणे वरुणे २०, सतरिसभे गंधव्वे अग्गिवेसायणे आतवे आवते २५, तट्ठवे भूमहे रिसभे सव्वट्ठसिद्धे रक्खसे ३० ।
एक-एक अहोरात्र (दिन-रात ) मुहूर्त्त - गणना की अपेक्षा तीस मुहूर्त्त का कहा गया है। इन तीस मुहूर्तों के तीस नाम हैं, जैसे- १. रौद्र, २ शक्त, ३ मित्र, ४ वायु, ५ सुपीत, ६ अभिचन्द्र, ७ माहेन्द्र, ८ प्रलम्ब, ९ ब्रह्मा, १० सत्य, ११ आनन्द, १२ विजय, १३ शिवसेन, १४ प्राजापत्य, १५ उपशम, १६ ईशान, १७ तष्ट, १८ भावितात्मा, १९ वैश्रमण, २० वरुण, २१ शतऋषभ, २२ गन्धर्व, २३ अग्निवैशायन, २४ आतप, २५ आवर्त, २६ तष्टवान, २७ भूमह (महान), २८ ऋषभ २९ सर्वार्थसिद्ध और ३० राक्षस।