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द्वात्रिंशत्स्थानक-समवाय]
[९५ करे।
२६. अप्रमाद-अपने दैवसिक और रात्रिक आवश्यकों के पालन आदि में प्रमाद न करे। २७. लवालव-प्रतिक्षण अपनी सामाचारी के परिपालन में सावधान रहे। २८. ध्यान-संवरयोग-धर्म और शक्ल ध्यान की प्राप्ति के लिए आस्रव-द्वारों का संवर करे। २९. मारणान्तिक कर्मोदय के होने पर भी क्षोभ न करे, मन में शान्ति रखे। ३०. संग-परिज्ञा-संग (परिग्रह) की परिज्ञा करे अर्थात् उसके स्वरूप को जान कर त्याग करे। ३१. प्रायश्चित्तकरण-अपने दोषों की शुद्धि के लिए नित्य प्रायश्चित्त करे।
३२. मारणान्तिक-आराधना-मरने के समय संलेखना-पूर्वक ज्ञान-दर्शन, चारित्र और तप की विशिष्ट आराधना करे।
२१०-बत्तीसं देविंदा पण्णत्ता तं जहा-चमरे बली धरणे भूआणंदे जाव घोसे महाघोसे, चंदे सूरे सक्के ईसाणे सणंकुमारे जाव पाणए अच्चुए।
बत्तीस देवेन्द्र कहे गये हैं, जैसे- १. चमर, २. बली, ३. धरण, ४. भूतानन्द, यावत् (५. वेणुदेव, ६ वेणुदाली,७. हरिकान्त, ८. हरिस्सह,९. अग्निशिख, १०. अग्निमाणव, ११. पूर्ण, १२. वशिष्ठ, १३. जलकन्त, १४. जलप्रभ, १५. अमितगति,१६. अमितवाहन, १७. वेलम्ब, १८. प्रभंजन) १९. घोष, २०. महाघोष, २१. चन्द्र, २२. सूर्य, २३ शक्र, २४. ईशान, २५. सनत्कुमार, यावत् (२६. माहेन्द्र, २७. ब्रह्म, २८. लान्तक, २९. शुक्र, ३०. सहस्रार) ३१. प्राणत, ३२. अच्युत।
विवेचन- भवनवासी देवों के दश निकाय हैं और प्रत्येक निकाय के दो दो इन्द्र होते हैं, अतः चमर और बली से लेकर घोष और महाघोष तक के बीस इन्द्र भवनवासी देवों के हैं। ज्योतिष्क देवों के चन्द्र और सूर्य ये दो इन्द्र हैं। शेष शक्र आदि दश इन्द्र वैमानिक-देवों के हैं। व्यन्तर देवों के आठों निकायों के सोलह इन्द्रों की अल्प ऋद्धिवाले होने से यहाँ विवक्षा नहीं की गई है।
२११.-कुंथुस्स णं अरहाओ बत्तीससहिआ बत्तीसं जिणसया होत्था। कुन्थु अर्हत् के बत्तीस अधिक बत्तीस सौ (३२३२) केवलि जिन थे। २१२-सोहम्मे कप्पे बत्तीसं विमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता।
रेवइणक्खत्ते बत्तीसइतारे पण्णत्ते।
बत्तीसतिविहे णढे पण्णत्ते। सौधर्म कल्प में बत्तीस लाख विमानावास कहे गये हैं। रेवती नक्षत्र बत्तीस तारावाला कहा गया है। बत्तीस प्रकार के नृत्य कहे गये हैं।
२१६-इमीसे णं ग्यणप्पभाए पुढवीए अत्यंगइयाणं नेरइयाणं बत्तीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता।
अहे सत्तमाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं बत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं बत्तीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु