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[समवायाङ्गसूत्र १३१ -इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं अट्ठारस पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं अट्ठारस पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं अट्ठारस पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। सहस्सारे कप्पे देवाणं उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता।
इस रत्नप्रभा पृथिवी में कितनेक नारकों की उत्कृष्ट स्थिति अठारह पल्योपम कही गई है। कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति अठारह पल्योपम कही गई है। सौधर्म-ईशान कल्पों में कितनेक देवों की स्थिति अठारह पल्योपम कही गई है। सहस्रार कल्प में देवों की उत्कृष्ट स्थिति अठारह सागरोपम कही गई है।
१३२-आणए कप्पे देवाणं अत्थेगइयाणं जहण्णेणं अट्ठारस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। जे देवा कालं सुकालं महाकालं अंजणं रिठं सालं समाणं दुमं महादुमं विसालं सुसालं पउमं पउमगुम्मं कुमुदं कुमुदगुम्मं नलिणं नलिणगुम्मं पुंडरीअं पुंडरीयगुम्मं सहस्सारवडिंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा तेसि णं देवाणं अट्ठारस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। ते णं देवाणं अट्ठारसहिं अद्धमासेहिं आणमंति वा, पाणमंति वा, ऊससंति वा, नीससंति वा। तेसि णं देवाणं अट्ठारस वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पज्जइ।
__ संतेगइआ भवसिद्धिया जीवा जे अट्ठारसहिं भवग्गहणेहिं सिन्झिस्संति बुझिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति।
आनत कल्प में कितनेक देवों की जघन्य स्थिति अठारह सागरोपम कही गई है। वहां जो देव काल, सुकाल, महाकाल, अंजन, रिष्ट, साल, समान, द्रुम, महाद्रुम, विशाल, सुशाल, पद्म, पद्मगुल्म, कुमुद, कुमुदगुल्म, नलिन, नलिनगुल्म, पुण्डरीक, पुण्डरीकगुल्म और सहस्रारावतंसक नाम के विशिष्ट विमानों में देवरूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की स्थिति अठारह सागरोपम कही गई है। वे देव अठारह अर्धमासों (नौ मासों) के बाद आन-प्राण या उच्छ्वास-नि:श्वास लेते हैं। उन देवों के अठारह हजार वर्ष के बाद आहार की इच्छा उत्पन्न होती है।
कितनेक भव्यसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो अठारह भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परम निर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व दुःखों का अन्त करेंगे।
॥अष्टादशस्थानक समवाय समाप्त ॥
एकोनविंशतिस्थानक-समवाय १३३-एगूणवीसं णायज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा
१उक्खित्तणाए, 'संघाडे, ३अंडे, कुम्मे अ, “सेलए । पतुंबे, अ, रोहिणी, "मल्ली, 'मांगदी, १°चंदिमाति अ ॥१॥ ११दावद्दवे, १२उदगणाए, १३मंडुक्के, १४तेतली इ अ । १५नंदिफले, १६अवरकंका, १७आइण्णे, १८सुंसुमा इ अ ॥२॥