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[समवायानसूत्र णक्खत्तमासे सत्तावीसाहिं राइंदियाहिं राइंदियग्गेणं पण्णत्ते।सोहम्मीसाणेसुकप्पेसु विमाणपुढवी सत्तावीसं जोयणसयाई बाहल्लेणं पण्णत्ता।
जम्बूद्वीप नामक इस द्वीप में अभिजित् नक्षत्र को छोड़कर शेष नक्षत्रों के द्वारा मास आदि का व्यवहार प्रवर्तता है। (अभिजित् नक्षत्र का उत्तराषाढा नक्षत्र के चतुर्थ चरण में प्रवेश हो जाता है।) नक्षत्र मास सत्ताईस दिन-रात की प्रधानता वाला कहा गया है। अर्थात् नक्षत्र मास में २७ दिन होते हैं। सौधर्मईशान कल्पों में उनके विमानों की पृथिवी सत्ताईस सौ (२७००) योजन मोटी कही गई है।
१८०-वेयगसम्मत्तबंधोवरयस्स णं मोहणिजस्स कम्मस्स सत्तावीसं उत्तरपगडीओ संतकम्मंसा पण्णत्ता। सावणसुद्धसत्तमीसु णं सूरिए सत्तावीसंगुलियं पोरिसिच्छायं णिव्वत्तइत्ता णं दिवसखेत्तं नियट्टमाणे रयणिखेत्तं अभिणिवट्टमाणे चारं चरइ।
वेदकसम्यक्त्व के बन्ध रहित जीव के मोहनीय कर्म की सत्ताईस प्रकृतियों की सत्ता कही गई है। श्रावण सुदी सप्तमी के दिन सूर्य सत्ताईस अंगुल की पौरुषी छाया करके दिवस क्षेत्र (सूर्य से प्रकाशित आकाश) की ओर लौटता हुआ और रजनी क्षेत्र (प्रकाश की हानि करता और अन्धकार को बढ़ता हुआ संचार करता है।
१८१-इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं सत्तावीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। अहेसत्तमाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं सत्तावीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं सत्तावीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता।सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं सत्तावीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता।
इस रत्नप्रभा पृथिवी में कितनेक नारकों की स्थिति सत्ताईस पल्योपम की है। अधस्तन सप्तम महातमःप्रभा पृथिवी में कितनेक नारकियों की स्थिति सत्ताईस सागरोपम की है। कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति सत्ताईस पल्योपम की है। सौधर्म-ईशान कल्पों में कितनेक देवों की स्थिति सत्ताईस पल्योपम की है।
१८२-मज्झिम-उवरिमगेवेजयाणं देवाणं जहण्णेणं सत्तावीसंसागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। जे देवा मज्झिमगेवेजयविमाणेसु देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेण सत्तावीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। ते णं देवा सत्तावीसाए अद्धमासेहिं आणमंति वा, पाणमंति वा, उस्ससंति वा, नीससंति वा। तेसि णं देवाणं सत्तावीसं वाससहस्सेहिं आहारटे समुप्पजइ। ___संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे सत्तावीसाए भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति बुझिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति।
मध्यम-उपरिम ग्रैवेयक देवों की जघन्य स्थिति सत्ताईस सागरोपम की है। जो देव मध्यम ग्रैवेयक विमानों में देवरूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति सत्ताईस सागरोपम की है। ये देव सत्ताईस
अर्धमासों (साढ़े तेरह मासों) के बाद आन-प्राण अर्थात् उच्छ्वास-नि:श्वास लेते हैं। उन देवों को . सत्ताईस हजार वर्षों के बाद आहार की इच्छा उत्पन्न होती है।
. कितनेक भव्यसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो सत्ताईस भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से