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[ समवायाङ्गसूत्र
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पंचदशरात्रमासिकी आरोपणा ४, विंशतिरात्र मासिकी आरोपणा ५ और पंचविंशतिरात्रमासिकी ६, आरोपणा
होती है।
जैसे मासिकी आरोपणा के छह भेद ऊपर बतलाये गये हैं, उसी प्रकार द्विमासिकी आरोपणा के ६ भेद, त्रिमासिकी आरोपणा के ६ भेद और चतुर्मासिकी आरोपणा के ६ भेद जानना चाहिए। इस प्रकार चारों मासिकी आरोपणा के २४ भेद हो जाते हैं ।
२७ दिन-रात के दिये गये प्रायश्चित्तों को लघुमासिक प्रायश्चित्त कहते हैं। ऐसे डेढ़ मास के प्रायश्चित्त को लघु द्विमासिक प्रायश्चित्त कहते हैं। ऐसे लघु त्रिमासिक, लघु चतुर्मासिक प्रायश्चित्तों को उपघातिक आरोपणा कहते हैं । यही पच्चीसवीं आरोपणा है। इसे उद्घातिक आरोषणा भी कहते हैं ।
पूरे मास भर के प्रायश्चित्त को गुरुमासिक कहा जाता है। इसके साथ अर्धपक्ष, पक्ष आदि के प्रायश्चित्तों के आरोपण करने को नुपघातिक आरोपण कहते हैं। इसे अनुद्घातिक मासिक प्रायश्चित्त भी कहा जाता है । यह छब्बीसवीं आरोपणा है ।
को कृत्स्ना आरोपणा
बहुत अधिक अपराध करनेवाले साधु को भी प्रायश्चित्तों को सम्मिलित करके छह मास के तपप्रायश्चित्त को अकृत्स्ना आरोपणा कहते हैं । यह अट्ठाईसवीं आरोपणा है। इसमें सभी छोटे-मोटे प्रायश्चित्त सम्मिलित हो जाते हैं।
साधु ने जितने अपराध किये हैं, उन सब के प्रायश्चित्तों को एक साथ कहते हैं । यह सत्ताईसवीं आरोपणा है ।
कितना ही बड़ा अपराध किया हो, पर छह मास से अधिक तप का विधान नहीं है ।
१८४ - भवसिद्धियाणं जीवाणं अत्थेगइयाणं मोहणिज्जस्स कम्मस्स अट्ठावीसं कम्मंसा संतकम्मा पण्णत्ता, तं जहा - सम्मत्तवेयणिज्जं मिच्छत्तवेयणिज्जं सम्मामिच्छत्तवेयणिज्जं, सोलस कसाय, णव णोकसाया ।
कितनेक भव्यसिद्धिक जीवों के मोहनीय कर्म की अट्ठाईस प्रकृतियों की सता कही गई है, जैसे – सम्यक्त्ववेदनीय, मिथ्यात्ववेदनीय, सम्यग्मिथ्यात्ववेदनीय, सोलह कषाय और नौ नोकषाय ।
१८५ - आभिणिबोहियणाणे अट्ठावीसविहे पण्णत्ते तं जहा- सोइंदियअत्थावग्गहे १, चक्खिंदियअत्थावग्गहे २, घाणिंदियअत्थावग्गहे ३, जिब्भिदियअत्थावग्गहे ४, फासिंदियअत्थावग्गहे ५, णोइंदियअत्थावग्गहे ६, सोइंदियवंजणोवग्गहे ७, घाणिंदियवंजणोवग्गहे ८, जिब्भिदियवंजणोवग्गहे ९, फासिंदियवंजणोवग्गहे १०, सोतिंदियईहा ११, चक्खिदियईहा १२, घाणिदियईहा १३, जिब्भिदियईहा १४, फासिंदियईहा १५ णोइंदियईहा १६, सोतिंदियावाए १७, चक्खिदियावाए १८ घाणिंदियावाए, १९. जिब्भिदियावाए २०, फासिंदियावाए २१, णोइंदियावाए २२ । सोइंदियधारणा २३, चक्खिदियधारणा २४, घाणिंदियधारणा २५, जिब्भिदियधारणा २६, फासिंदियधारणा २७, णोइंदियधारणा २८ ।
आभिनिबोधिकज्ञान अट्ठाईस प्रकार का कहा गया है, जैसे- १. श्रोत्रेन्द्रिय - अर्थावग्रह, २