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[समवायाङ्गसूत्र २७. मंत्रानुयोगश्रुत-लौकिक प्रयोजनों के साधक अनेक प्रकार के मंत्रों का साधन बताने वाला मंत्रशास्त्र।
२८. योगानुयोगश्रुत-स्त्री-पुरुषादि को वश में करनेवाले अंजन, गुटिका आदि के निरूपक शास्त्र।
२९. अन्यतीर्थिकप्रवृत्तानुयोग-कपिल, बौद्ध आदि मतावलम्बियों के द्वारा रचित्त शास्त्र।
उक्त प्रकार के शास्त्रों के पढ़ने और सुनने से मनुष्यों का मन इन्द्रिय-विषयों की ओर आकृष्ट होता है और भौम, स्वप्न आदि का फलादि बतानेवाले शास्त्रों के पठन-श्रवण से मुमुक्षु साधक अपनी साधना से भटक सकता है, अतः मोक्षाभिलाषी जनों के लिए उक्त सभी प्रकार के शास्त्रों को पापश्रुत कहा गया है।
१९२-आसाढे णं मासे एगूणतीसराइंदिआइं राइंदियग्गेणं पण्णत्ता।[एवं चेव] भद्दवए णं मासे, कत्तिए णं मासे, पोसे णं मासे, फग्गुणे णं मासे, वइसाहे णं मासे। चंददिणे णं एगूणतीसं मुहुत्ते सातिरेगे मुहुत्तग्गेणं पण्णत्ते।
__ आषाढ़ मास रात्रि-दिन की गणना की अपेक्षा उनतीस रात-दिन का कहा गया है। [इसी प्रकार] भाद्रपदमास, कार्तिकमास, पौषमास, फाल्गुणमास और वैशाखमास भी उनतीस-उनतीस रात-दिन के कहे गये हैं। चन्द्र दिन मुहूर्तगणना की अपेक्षा कुछ अधिक उनतीस मुहूर्त का कहा गया है।
१९३-जीवे णं पसत्थज्झवसाणजुत्ते भविए सम्मदिट्ठी तित्थकरनामसहिआओ णामस्स णियमा एगूणतीसं उत्तरपगडीओ णिबंधित्ता वेमाणिएसु देवेसु देवत्ताए उववज्जइ।
प्रशस्त अध्यवसान (परिणाम) से युक्त सम्यग्दृष्टि भव्य जीव तीर्थंकरनाम-सहित नामकर्म की उनतीस प्रकृतियों को बांधकर नियम से वैमानिक देवों में देवरूप से उत्पन्न होता है।
१९४-इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं एगूणतीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता।अहे सत्तमाए पुढवीए अत्यंगइयाणं नेरइयाणं एगूणतीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं एगूणतीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता।सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु देवाणं अत्थेगइयाणं एगूणतीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता।
इस रत्नप्रभा पृथिवी में कितनेक नारकों की स्थिति उनतीस पल्योपम की है। अधस्तन सातवीं पृथिवी में कितनेक नारकों की स्थिति उनतीस सागरोपम की है। कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति उनतीस पल्योपम की है। सौधर्म-ईशान कल्पों में कितनेक देवों की स्थिति उनतीस पल्योपम की होती है।
१९५-उवरिममज्झिमगेवेजयाणं देवाणं जहणणेणं एगूणतीसंसागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। जे देवा उवरिमहेट्ठिमगेवेजयविमाणेसु देवत्ताए उववण्णा तेसि णं देवाणं उक्कोसेण एगूणतीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। ते णं देवा एगूणतीसाए अद्धमासेहि आणमंति वा, पाणमंति वा, ऊससंति वा, नीससंति वा। तेसि णं देवाणं एगूणतीसं वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पज्जइ।
संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे एगूणतीसभवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति बुझिस्संति मुच्चिस्संति