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अष्टादशस्थानक - समवाय ]
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क्षुल्लक भी कहते हैं । ऐसे क्षुद्रक और व्यक्त साधुओं के १८ संयमस्थान भगवान् महावीर ने कहे हैं। हिंसादि पांचों पापों का और रात्रिभोजन का यावज्जीवन के लिए सर्वथा त्याग करना व्रतषट्क है । पृथिवी आदि छह काया के जीवों की रक्षा करना कायषट्कवर्जन है। अकल्पनीय भक्त-पान का त्याग, गृहस्थ के पात्र का उपयोग नहीं करना, पलंगादि पर नहीं सोना, स्त्री-संसक्त आसन पर नहीं बैठना, स्नान नहीं करना और शरीर की शोभा - शृंगारादि नहीं करना । इन अठारह स्थानों से साधुओं के संयम की रक्षा होती है। १२७ - आयारस्स णं भगवतो सचूलियागस्स अट्ठारस पयसहस्साइं पयग्गेणं पण्णत्ता । चूलिका - सहित भगवद्- आचाराङ्ग सूत्र के पद- प्रमाण से अठारह हजार पद कहे गये हैं ।
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१२८ - बंभीए णं लिवीए अट्ठारसविहे लेखविहाणे पण्णत्ते, तं जहा - बंभी १, जवणालिया २, दोसऊरिया ३, खरोट्टिया ४, खरसाविआ ५, पहाराइया ६, उच्चत्तरिआ ७ अक्खरपुट्ठिया ८, भोगवता ९, वेणतिया १०, णिण्हइया ११, अंकलिवी १२, गणिअलिवी १३, गंधव्वलिवी [ भूयलिवी ] १४, आदंसलिवी १५, माहेसरीलिवी १६, दामिलिवी १७, वोलिंदलिवी १८ ।
ब्राह्मीलिपि के लेख-विधान अठारह प्रकार के कहे गये हैं, जैसे- १. ब्राह्मीलिपि, २. यावनीलिपि, ३. दोषउपरिकालिपि, ४. खरोष्ट्रिकालिपि, ५. खर- शाविकालिपि, ६. प्रहारातिकालिपि, ७. उच्चत्तरिकालिपि, ८. अक्षरपृष्ठिकालिपि, ९. भोगवतिकालिपि, १०. वैणकियालिपि, ११. निह्नविकालिपि, १२. अंकलिपि, १३. गणितलिपि, १४. गन्धर्वलिपि, [ भूतलिपि ] १५. आदर्शलिपि, १६. माहेश्वरीलिपि, १७. दामिलिपि, १८. पोलिन्दी लिपि ।
विवेचन – संस्कृत टीकाकार ने लिखा है कि इन लिपियों का स्वरूप दृष्टिगोचर नहीं होता है। फिर भी वर्तमान में प्रचलित अनेक लिपियों का बोध होता है । जैसे - यावनीलिपि अर्बी-फारसी, उड़ियालिपि, द्राविड़ीलिपि आदि । आगम-ग्रन्थों में भी लिपियों के नामों में भिन्नता दृष्टिगोचर होती है।
१२९ – अत्थिनत्थिप्पवायस्स णं पुव्वस्स अट्ठारस वत्थू पण्णत्ता। अस्तिनास्तिप्रवाद पूर्व के अठारह वस्तु नामक अर्थाधिकार कहे गये हैं ।
१३० - धूमप्पभा णं पुढवी अट्ठारसुत्तरं जोयणसयसहस्सं बाहल्लेणं पण्णत्ता । पोसासाढेसु णं मासेसु सइ उक्कोसेणं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, सइ उक्कोसेणं अट्ठारसमुहुत्ता राती भवइ ।
धूमप्रभा नामक पांचवीं पृथिवी की मोटाई एक लाख अठारह हजार योजन कही गई है। पौष और आषाढ़ मास में एक बार उत्कृष्ट रात और दिन क्रमशः अठारह मुहूर्त के होते हैं।
विवेचन – पौष मास सबसे बड़ी रात अठारह मुहूर्त की होती है और आषाढ़ मास में सबसे बड़ा दिन अठारह मुहूर्त का होता है, यह सामान्य कथन है । हिन्दू ज्योतिष गणित के अनुसार आषाढ़ में कर्क संक्रान्ति को सबसे बड़ा दिन और मकर संक्रान्ति के दिन पौष में सबसे बड़ी रात होती है । अंग्रेजी ज्योतिष के अनुसार २३ दिसम्बर को सबसे बड़ी रात और २१ जून को सबसे बड़ा दिन अठारह मुहूर्त का होता है। एक मुहूर्त में ४८ मिनिट होते हैं ।