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[समवायाङ्गसूत्र १४२-इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं वीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। छट्ठीए पुढवीए अत्थेगइयाणं णेरइयाणं वीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता।असुरकुमाराणं देवाणं अत्थोगइयाणं वीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं वीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। पाणते कप्पे देवाणं उक्कोसेणं वीस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। - इस रत्नप्रभा पृथिवी में कितनेक नारकों की स्थिति बीस पल्योपम कही गई है। छठी तमःप्रभा पृथिवी में कितनेक नारकों की स्थिति बीस सायरोपम कही गई है। कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति बीस पल्योपम कही गई है। सौधर्म-ईशान कल्पों में कितनेक देवों की स्थिति बीस पल्योपम कही गई है। प्राणत कल्प में देवों की उत्कृष्ट स्थिति बीस सागरोपम कही गई है।
१४३ -आरणे कप्पे देवाणं जहण्णेणं वीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। जे देवा सायं विसायं सुविसायं सिद्धत्थं उप्पलं भित्तिलं, तिगिच्छं दिसासोवत्थियं पलंबं रुइलं पुष्पं सुपुष्पं पुष्पावत्तं पुष्फपभं पुष्फकंतं पुष्फवण्णं पुष्फलेसं पुष्पज्झयं पुष्फसिंगं पुष्फसिद्धं पुप्फत्तरवडिंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं वीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। ते णं देवा वीसाए अद्धमासाणं आणमंति वा, पाणमंति वा, उस्ससंति वा, नीससंति वा, तेसिं ण देवाणं वीसाए वाससहस्सेहिं आहारठे समुप्पज्जइ।।
संतेगइआ भवसिद्धिआ जीवा जे वीसाए भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति बुझिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति।
आरण कल्प में देवों की जघन्य स्थिति बीस सागरोपम कही गई है। वहाँ जो देव सात, विसात, सुविसात, सिद्धार्थ, उत्पल, भित्तिल, तिगिंछ, दिशासौवस्तिक, प्रलम्ब, रुचिर, पुष्प, सुपुष्प, पुष्पावर्त, पुष्पप्रभ पुष्पकान्त, पुष्पवर्ण, पुष्पलेश्य, पुष्पध्वज, पुष्पशृंग, पुष्पसिद्ध (पुष्पसृष्ट) और पुष्पोत्तरावतंसक नाम के विशिष्ट विमानों में देव रूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति बीस सागरोपम कही गई है। वे देव बीस अर्धमासों (दशमासों) के बाद आन-प्राण या उच्छ्वास-नि:श्वास लेते हैं। उन देवों को बीस हजार वर्षों के बाद आहार की इच्छा उत्पन्न होती है।
. कितनेक भव्यसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो बीस भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परमनिर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व दुःखों का अन्त करेंगे।
॥विंशतिस्थानक समवाय समाप्त ॥
एकविंशतिस्थानक-समवाय १४४-एक्कवीसं सबला पण्णत्ता, तं जहा-हत्थकम्मं करेमाणे सबले १, मेहुणं पडिसेवमाणे सबले २, राइभोअणं भुंजमाणे सबले ३, आहाकम्मं भुंजमाणे सबले ४, सागारियं पिंडं भुंजमाणे सबले ५, उद्देसियं कीयं आहटु दिन्जमाणं भुंजमाणे सबले ६, अभिक्खणं पडियाइक्खेत्ता णं भुंजमाणे सबले ७ अंतो छण्हं मासाणं गणाओ गणं संकममाणे सबले ८ अंतो मासस्स तओ दगलेवे करेमाणे सबले ९, अंतो मासस्स तओ माईठाणे सेवमाणे सबले १०,