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सप्तदशस्थानक-समवाय]
[५१ संतेगइआ भवसिद्धिआ जीवा जे सोलसहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति बुझिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति।
महाशुक्र कल्प में कितनेक देवों की स्थिति सोलह सागरोपम कही गई है। वहां जो देव आवर्त, व्यावर्त, नन्द्यावर्त, महानन्द्यावर्त, अंकुश, अंकुशप्रलम्ब, भद्र, सुभद्र, महाभद्र, सर्वतोभद्र और भद्रोत्तरावतंसक नाम के विमानों में देवरूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति सोलह सागरोपम कही गई है। वे देव सोलह अर्धमासों (आठ मासों) के बाद आन-प्राण या उच्छ्वास निःश्वास लेते हैं। उन देवों को सोलह हजार वर्षों के बाद आहार की इच्छा उत्पन्न होती है।
कितनेक भव्यसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो सोलह भव करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परिनिर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व दुःखों का अन्त करेंगे।
॥षोडशस्थानक समवाय समाप्त॥
सप्तदशस्थानक-समवाय ११६ –सत्तरसविहे असंजमे पण्णत्ते, तं जहा-पुढविकायअसंजमे आउकायअसंजमे तेउकायअसंजमे वाउकायअसंजमे वणस्सइकायअसंजमे बेइंदियअसंजमे तेइंदियअसंजमे चउरिंदियअसंजमे पंचिंदिअअसंजमे अजीवकायअसंजमे पेहाअसंजमे उवेहाअसंजमे अवहटुअसंजमे अप्पमज्जणाअसंजमे मणअंसजमे वइअसंजमे कायअसंजमे।
सत्तरह प्रकार का असंयम कहा गया है, जैसे- १. पृथवीकाय-असंयम, २. अप्काय-असंयम, ३. तेजस्काय-असंयम, ४. वायुकाय-असंयम,५. वनस्पतिकाय-असंयम, ६.द्वीन्द्रिय-असंयम,७. त्रीन्द्रियअसयम,८.चतुरिन्द्रिय-असंयम, ९.पंचेन्द्रिय-असंयम,१०.अजीवकाय-असंयम, ११. प्रेक्षा-असंयम, १२. उपेक्षा-असंयम, १३. अपहत्य-असंयम, १४. अप्रमार्जना-असंयम, १५. मन:-असंयम, १६. वचनअसंयम, १७. काय-असंयम।
११७-सत्तरसविहे संजमे पण्णत्ते, तं जहा-पुढविकायसंजमे आउकायसंजमे तेउकायसंजमे वाउकायसंजमे वणस्सइकायसंजमे बेइंदियसंजमे तेइंदियसंजमे चउरिदियसंजमे पंचिंदियसंजमे अजीवकायसंजमे पेहासंजमे उवेहासंजमे अवहटुसंजमे पमज्जणासंजमे मणसंजमे वइसंजमे कायसंजमे।
सत्तरह प्रकार का संयम कहा गया है। जैसे-१. पृथिवीकाय-संयम, २. अप्काय-संयम, ३. तेजस्काय-संयम, ४. वायुकाय-संयम, ५. वनस्पतिकाय-संयम, ६. द्वीन्द्रिय-संयम, ७. त्रीन्द्रिय-संयम, ८. चतुरिन्द्रिय-संयम,९. पंचेन्द्रिय-संयम, १०.अजीवकाय-संयम, ११. प्रेक्षा-संयम,१२. उपेक्षा संयम, १३. अपहृत्य-संयम, १४. प्रमार्जना-संयम, १५. मनः-संयम, १६. वचन-संयम, १७. काय-संयम।
विवेचन–समिति या सावधानीपूर्वक यम-नियमों के पालन करने को संयम कहते हैं और संयम का पालन नहीं करना असंयम है। एकेन्द्रिय पृथ्विीकाय आदि जीवों की रक्षा करना, उनको किसी प्रकार से बाधा नहीं पहुँचाना पृथिवीकायादि जीवविषयक संयम है और उनको बाधादि पहुँचाना उनका