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[ समवायाङ्गसूत्र
असंयम है। अजीव पौद्गलिक वस्तुओं सम्बन्धी संयम अजीव - संयम है और उनकी अयतना करना अजीव - असंयम है। स्थान, उपकरण, वस्त्र - पात्रादि का विधिपूर्वक पर्यवेक्षण करना प्रेक्षासंयम है और उनका पर्यवेक्षण नहीं करना, या अविधिपूर्वक करना प्रेक्षा- अंसयम है। शत्रु-मित्र में और इष्ट-अनिष्ट वस्तुओं में राग-द्वेष नहीं करना, किन्तु उनमें मध्यस्थभाव रखना उपेक्षासंयम है। उनमें राग-द्वेषादि करना उपेक्षा-असंयम है। संयम के योगों की उपेक्षा करना अथवा असंयम के कार्यों में व्यापार करना उपेक्षाअसंयम है। जीवों को दूर कर निर्जीव भूमि में विधिपूर्वक मल-मूत्रादि का परठना अपहृत्य - संयम है और अविधि से परठना अपहृत्य - असंयम है। पात्रादि का विधिपूर्वक प्रमार्जन करना प्रमार्जना संयम है और अविधिपूर्वक करना या न करना अप्रमार्जना- असंयम है। मन, वचन, काय का प्रशस्त व्यापार करना उनका संयम है और अप्रशस्त व्यापार करना उनका असंयम है। ।
११८ - माणुसुत्तरे णं पव्वए सत्तरस एक्कीवीसे जोयणसए उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ते। सव्वेसिं पिणं वेलंधर- अणुवेलंधरणागराईणं आवासपव्वया सत्तरसएक्कवीसाइं जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता । लवणे णं समुद्दे सत्तरस जोयणसहस्साइं सव्वग्गेणं पण्णत्ते ।
मानुषोत्तर पर्वत सत्तरह सौ इक्कीस ( १७२१) योजन ऊंचा कहा गया है। सभी वेलन्धर और अनुवेलन्धर नागराजों के आवास पर्वत सत्तरह सौ इक्कीस योजन ऊंचे कहे गये हैं । लवणसमुद्र की सर्वाग्र शिखा सत्तरह हजार योजन ऊंची कही गई है।
११९ - इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ सातिरेगाई सत्तरस जोयणसहस्साइं उड्ढं उप्पतित्ता ततो पच्छा चारणाणं तिरिआ गती पवत्तति ।
इस रत्नप्रभा पृथिवी के बहुसम रमणीय भूमि भाग से कुछ अधिक सत्तरह हजार योजन ऊपर जाकर (उठ कर ) तत्पश्चात् चारण ऋद्धिधारी मुनियों की नन्दीश्वर, रुचक आदि द्वीपों में जाने के लिए तिर्धी गति होती
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१२० - चमरस्स णं असुरिंदस्स असुररण्णो तिगिंछिकूडे उप्पायपव्वए सत्तरस एक्कवीसाई जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ते । बलिस्स णं असुरिंदस्स रुअगिंदे उप्पायपव्वए सत्तरस एक्कवीसाइं जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ते ।
असुरेन्द्र असुरराज चमर का तिगिंछिकूट नामक उत्पात पर्वत सत्तरह सौ इक्कीस ( १७२१ ) योजन ऊंचा कहा गया है। असुरेन्द्र बलि का रुचकेन्द्र नामक उत्पात पर्वत सत्तरह सौ इक्कीस (१७२१) योजन ऊंचा कहा गया है।
१२१ - सत्तरसविहे मरणे पण्णत्ते । तं जहा - आवीईमरणे ओहिमरणे आयंतियमरणे बलायमरणे वसट्टमरणे अंतोसल्लमरणे तब्भवमरणे बालमरणे पंडितमरणे बालपंडितमरणे छउमत्थमरणे केवलिमरणे वेहाणसमरणे गिद्धपिट्ठमरणे भत्तपच्चक्खाणमरणे इंगिणिमरणे पाओवगमणमरणे ।
मरण सत्तरह प्रकार का कहा गया है, जैसे- १. आवीचिमरण, २. अवधिमरण, ३. आत्यन्तिकमरण, ४. वलन्मरण, ५. वशार्तमरण, ६. अन्तःशल्यमरण, ७. तद्भवमरण, ८. बालमरण, ९. पंडितमरण,