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[समवायाङ्गसूत्र से अदण्ड भी एक है। इसी प्रकार क्रिया-अक्रिया, लोक-अलोक, धर्मास्तिकाय-अधर्मास्तिकाय, पुण्यपाप, बन्ध-मोक्ष, आस्रव-संवर, वेदना और निर्जरा इन सभी परस्पर प्रतिपक्षी या सापेक्ष पदार्थों को भी संग्रहनय की अपेक्षा समान धर्मवाले होने से एक-एक जानना चाहिए। जैन सिद्धान्त में सभी कथन नयों की अपेक्षा से किया जाता है। समवायाङ्ग के इस प्रथम स्थानक में सर्वकथन संग्रहनय की अपेक्षा से एक रूप में किया गया है।
४-जंबुद्दीवे दीवे एगं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं पन्नत्ते। पालए जाणविमाणे एगं जोयणसयसहस्सं आयाम-विक्खंभेणं पन्नत्ते। सव्वट्ठसिद्धे महाविमाणे एगं जोयणसयसहस्सं आयाम-विक्खंभेणं पन्नत्ते।
जम्बूद्वीप नामक यह प्रथम द्वीप आयाम (लम्बाई) और विष्कम्भ (चौड़ाई) की अपेक्षा शतसहस्र (एक लाख) योजन विस्तीर्ण कहा गया है। सौधर्मेन्द्र का पालक नाम का यान (यात्रा के समय उपयोग में आने वाला पालक नाम के आभियोग्य देव की विक्रिया से निर्मित विमान) एक लाख योजन आयाम-विष्कम्भ वाला कहा गया है। सर्वार्थसिद्ध नामक अनुत्तर महाविमान एक लाख योजन आयामविष्कम्भ वाला कहा गया है।
___ भावार्थ-जम्बूद्वीप, पालक यान-विमान और सर्वार्थसिद्ध अनुत्तर महाविमान एक-एक लाख योजन रूप समान विस्तार वाले हैं।
५-अद्दानक्खत्ते एगतारे पन्नत्ते। चित्तानक्खत्ते एगतारे पन्नत्ते।सातिनखत्ते एगतारे पन्नत्ते।
आर्द्रा नक्षत्र एक तारा वाला कहा गया है। चित्रा नक्षत्र एक तारा वाला कहा गया है। स्वाति नक्षत्र एक तारा वाला कहा गया है।
६-इमीसे णं रयणप्पहाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं एगं पलिओवमं ठिई पन्नता। इमीसे णं रयणप्पहाए पुढवीए नेरइयाणं उक्कोसेणं एगं सागरोवमं ठिई पन्नत्ता। दोच्चाए पुढवीए नेरइयाणं जहन्नेणं एगं सागरोवमं ठिई पन्नता।असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं एगं पलिओवमं ठिई पन्नत्ता। असुरकुमाराणं देवाणं उक्कोसेणं एगं साहियं सागरोवमं ठिई पत्नत्ता। असुरकुमारिंदवज्जियाणं भोमिज्जाणं देवाणं अत्थेगइयाणं एगं पलिओवमं ठिई पन्नत्ता। असंखिज्जवासाउअसन्नि-पंचिंदिय-तिरिक्ख-जोणियाणं अत्थेगइयाणं एगं पलिओवमं ठिई पन्नत्ता। असंखिज्जवासाउय-गब्भवक्कंतियसनिमणुयाणं अत्थेगइयाणं एगं पलिओवमं ठिई पन्नत्ता।
__इसी रत्नप्रभा पृथिवी में कितनेक नारकों की स्थिति एक पल्योपम कही गई है। इसी रत्नप्रभा पृथिवी में कितनेक नारकों की उत्कृष्ट स्थिति एक सागरोपम कही गई है। दूसरी शर्करा पृथिवी में नारकियों की जघन्य स्थिति एक सागरोपम कही गई है। कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति एक पल्योपम कही गई है। असुरकुमार देवों की उत्कृष्ट स्थिति कुछ अधिक एक सागरोपम कही गई है। असुरकुमारेन्द्रों को छोड़ कर शेष भवनवासी कितनेक देवों की स्थिति एक पल्योपम कही गई है। कितनेक असंख्यात वर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीवों की स्थिति एक पल्योपम कही गई है। कितनेक असंख्यात वर्षायुष्क गर्भोपक्रान्तिक संज्ञी मनुयों की स्थिति एक पल्योपम कही गई है।