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पञ्चदशस्थानक-समवाय] सात क्षेत्रों में क्रमशः प्रवहमान रहता है।
- ९९-इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं चउद्दस पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। पंचमीए णं पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं चउद्दस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं चउद्दस पलिओवमाइं ठिई पण्ण्त्ता । सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं चउद्दस पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता।लंतए कप्पे देवाणं अत्थेगइयाणं चउद्दस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता।
इस रत्नप्रभा पृथिवी में कितनेक नारकों की स्थिति चौदह पल्योपम कही गई है। पांचवी पृथिवी में किन्हीं-किन्हीं नारकों की स्थिति चौदह सागरोपम की है। किन्हीं-किन्हीं असुरकुमार देवों की स्थिति चौदह पल्योपम की है। सौधर्म और ईशान कल्पों में कितनेक देवों की स्थिति चौदह पल्योपम कही गई है। लान्तक कल्प में कितनेक देवों की स्थिति चौदह सागरोपम कही गई है।
१००–महासुक्के कप्पे देवाणं अत्थेगइयाणं जहण्णेण चउद्दस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। जे देवा सिरिकंतं सिरिमहिअंसिरिसोमनसंलंतयंकाविट्ठ महिंदं महिंदकंतं महिंदुत्तरवडिंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा तेसिं णं देवाणं उक्कोसेणं चउद्दस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। ते णं देवा चउद्दसहिं अद्धमासेहिं आणमंति वा पाणमंति वा, उस्ससंति वा, नीससंति वा। तेसिं णं देवाणं चउद्दसहिं वाससहस्सेहिं आहारट्ठे समुप्पज्जइ।
संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे चउद्दसहिं भवग्गहणेहिं सिन्झिस्संति बुझिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति।
___ महाशुक्र कल्प में कितनेक देवों की जघन्य स्थिति चौदह सागरोपम कही गई है। वहां जो देव श्रीकान्त श्रीमहित, श्रीसौमनस, लान्तक, कापिष्ठ, महेन्द्र महेन्द्रकान्त और महेन्द्रोत्तरावतंसक नाम के विशिष्ट विमानों में देवरूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति चौदह सागरोपम कही गई है। वे देव चौदह अर्धमासों (सात मासों) के बाद आन-प्राण या उच्छ्वास-नि:श्वास लेते हैं। उन देवों को चौदह हजार वर्षों के बाद आहार की इच्छा उत्पन्न होती है।
कितनेक भव्यसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो चौदह भव ग्रहण कर सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परिनिर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व दुःखों का अन्त करेंगे।
॥चतुर्दशस्थानक समवाय समाप्त।
पञ्चदशस्थानक-समवाय १०१-पन्नरस परमाहम्मिआ पण्णत्ता, तं जहा
१अंबे २अंबरिसी चेव ३सामे ४ सबलेत्ति आवरे । ५रुद्दो विरुद्द "काले अ “महाकालेत्ति आवरे ॥१॥ ९असिपत्ते १°धणु ११कुम्भे १२वालुए वे १३अरणी ति अ। १४खरस्सरे १५महाघोसे एते पन्नरसाहिआ ॥२॥